Book Title: Agam 02 Suyagado Angsutt 02 Moolam
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

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Page 24
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra सुयक्खंघो - १, अज्झयणं-३, उद्देसो-२ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २०० ) ( १९८) वत्थगंधमलंकारं इत्थीओ सयणाणि य भुंजाहिमाई भोगाई आउसो पूजयामु तं ( १९९) जो तुमे नियमो चिष्णो भिक्खुभावम्मि सुब्बया अगारमावसंतस्स सच्चो संविज्जए तहा चिरं दूइजामाणस्स दोसी दाणिं कुओ तब इच्छेव णं णिमंतेति णीवारेण च सूयरं ( २०१) चोइया भिक्खुचरिवाए अचयंता जवित्तए तत्य मंदा विप्सीयंति उज्जाणंसि व दुब्बला अचयंता व लूहेण उवहाणेण तजिया तत्य मंदा विलीयंति पंकंसि व जरग्गवा एवं णिमंतणं लिद्धं मुच्छिया गिद्ध हित्यसु ( २०२ ) ( २०३ ) पिंडवायं गिलाणस्स जं सारेए दलाह य (२१३) एवं तुभे सरागत्या अण्णमण्ण म णुव्वसा नट्ठ- सप्पह-सदभावा संसारस्स अपारगा ( २१४) अह ते पडिभासेज्जा भिक्खू मोक्खविसारए एवं तुभे पभासंता दुपक्खं चैव सेवहा 1198211-17 For Private And Personal Use Only ।।१९९।।-18 ॥२००।-19 1130911-20 अज्झोववण्णा कामेहिं चोइजंता गिहं गय त्ति बेमि ॥ २०३ ॥ - 22 - तइए अज्झयणे बीओ उद्देसो समत्तो • -: तइओ उद्देसो : ( २०४ ) जहा संगामकालम्मि पिट्ठओ भीरु चेहइ वलयं गहणं नूमं को जाणइ पराजयं ( २०५ ) मुहुत्ताणं मुहुत्तरस मुहुत्तो होइ तारिसो पराजियाऽवसप्पामो इति भीरु उवेहई ( २०६ ) एवं तु समणा एगे अबलं नञ्चाण अप्पगं अणायं मयं दिस्स अवकष्पंति मं सुयं ( २०७ ) को जाणइ वियोवातं इत्थीओ उदगाओवा चोइजंता पवक्खामो न णे अस्थि पकप्पियं ( २०८ ) इच्छेयं पडिलेहंति बलयाइ पडिलेहिणो वितिगिंछसमावण्णा पंधाणं व अकोविया ( २०९ ) जे उ संग्रामकालम्पि नाया सूरपुरंगमा न ते पिट्ठपुचेहिंति किं परं मरणं सिया ( २१० ) एवं समुट्ठिए भिक्खू वोसिजा गारवंधणं आरंभं तिरियं कट्टु अत्तत्ताए परिव्वए तमेगे परिभासंति भिक्खुयं साहुजीविणं जे एवं परिभासंति अंतए ते समाहिए (२१२ ) संबद्धसमकप्पा हु अण्णमण्णेसु मुच्छिया ( २११ ) MRORII-21 ॥२०४॥-1 ॥२०५॥1-2 ॥२०६ ॥१-३ ॥२०७॥1-4 ॥२०८11-5 1130911-6 1139011-7 ॥२११1-8 ॥२१२।1-9 1139311-30 २१४-11 94

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