Book Title: Agam 02 Suyagado Angsutt 02 Moolam
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

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Page 18
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥९९|-11 ||१०|-13 सुपखंधो-१, अन्ययणं-१, उद्देसो-१ जे यावि बहुस्सुए सिया धम्भिए माहणे मिक्खुए सिया अभिणूमकडेहिं मुच्छिए तिव्वं से कम्पेहिं किसती ॥१५||-7 अह पास विवेगमुट्ठिए अवितिपणे इह पासई धुतं नाहिसि आरं कओ परं वेहासे कम्मेहिं किच्चई ॥१६॥-8 (९७) जइ वि य निगिणे किसे चरे जइ वि य मुंजिय मासमंतसो जे इह मायादि मिञई आगंता गमादणंतसो |१७|1-9 (९८) पुरिसोरम पावकम्मुणा पलिचंतं मणुयाण जीवियं सण्णा इह काममुछिया मोहं जंति नरा असंवुडा ॥८॥-10 जययं विहरावि जोगरं अणुपाणा पंथा दुरुत्तरा अणुसासणमेव पक्क मे वीरेहि सम्म पवेइयं (१००) विरया वीरा समुट्ठिया कोहाकायरियाइपीसणा पामे न हणंति सव्यसो पायाओ विरयाऽभिनिव्बुडा ॥१००।-12 (१०१) न वि ता अहमेव लुप्पए लुप्पंती लोगंसि पाणिणो एवं सहिएऽहिपासए अनिहे से पुछेऽहियासए । (१०२) धुणिया कुलियं व लेववं कसए देहमणासणादिहिं अविहिंसामेव पव्वए अणुधम्मे मुणिणा पवेइओ ॥१०२॥-14 (१०३) सरणी जह पंसुगुंडिया विहुणिय घसयई सियं रयं एवं दविओवहाणवं कम्मं खवइ तस्सि माहणे । ११०३।1-15 (१०४) उट्ठियमणगारमेसणं समणं ठाणठियं तवस्सिणं इहरा वुड्ढा य पत्थए अवि सुस्से न य तं लभेजणा ॥१०४||-16 (१०५) जई कालुणियाणि काप्सिया जइ रोयंति य पुत्तकारणा दवियं भिक्खुं समुट्ठियं नो लव्यंति णं सग्णवेत्तए १०५||-17 (१०६) जइ तं कामेहि लाविया जइ आणेज तं बंधिता घरं तं जीवित नावकंखिणं नो लभंति तं सण्णवेत्तए ॥१०६||-18 (१०७) सेहंति य णं ममाइणो मायापिया य सुया य मारिया पोसाहि णे पासओ तुमं लोगं परं पि जहासि पोसणे ॥१०७-19 (१०८) अण्णे अण्णेहिं मुच्छिया महं जंति नरा असंवुडा विसमं विसमेहि गाहिया ते पायेहिं पुणो पगटिमया ११०८॥-20 (१०९) तम्हा दवि इस्ख पंडिए पावाओ विरएभिनिम्बुडे। पणए वीरे महाविहिं सिद्धिपहं नेयाउयं धुवं ११०९||-21 (११०) वेयालियमगमागओ मणवयसा काएण संयुडो चिच्चा वित्तं च नायओ आरंमं च सुसंवुड़े चो त्ति बेमि॥११०11-22 • बीए अन्नपणे पढमो उद्देसो सफ्तो. -: बीओ उद्देसो:(१११) तय सं व जहाई से रयं इह संखाय मुणी न मजई गोवण्णतरेण माहणे अहऽसेयकरी अण्णेसि इंखिणी ॥१११/-1 For Private And Personal Use Only

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