Book Title: Agam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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मर्मप्रकाशिका टीका श्रुतस्कंध २उ. १ सू० २ पिण्डैषणाध्ययननिरूपणम् शून्यगृहादीनामुपसंग्रहो योध्यः, अतएवाह-अल्पाण्डे वा, अल्प शब्दस्य अमावार्धक तया अण्डरहितप्रदेशे इति तदर्थः, एवम् अल्पप्राणे-प्राणियर्जितस्थले इत्यर्थः, तथा अल्पबीजे-गोधमादिबीजजन्य कुरादिरहितस्थले इति तदर्थमाह-अल्पहरिते-अङ्कुरादिरहितप्रदेशे इत्यर्थः, एवम् अल्वावश्यायेतुपाररहितस्थले, अवश्यायस्तुतूपार इति कोष: तथा अल्पोदके-उदकरहित स्थले इत्यर्थः एवम्-अल्पोत्तिङ्गपनकदकमृत्तिकामर्कटसन्तानके-उत्तिगस्तृणाग्रस्थितजलबिन्दुः, पनकः-उल्लीजन्तुविशेषः, दकमृत्तिका-उदकमिश्रितमृतिका, मर्कट:-सूक्ष्मजन्तुविशेषः, एतेषां सन्तानः समूहो यत्र नस्यात्तादृशस्थले इत्यर्थः, तदेवमुक्तरीत्या अण्डादि जीवजातदोषवर्जिते उद्यानादिस्यले गत्या पूर्वगृहीतचतुविधाहारे संसक्तं सूक्ष्मजीवजातं विविध विविच्य-पृथकृत्य पृथकृत्य अपाकरणेन परिस्पज्य परित्यज्य क्रियाऽभ्यावृत्त्या अशुद्धांशस्य सर्वथा परित्यागः सूच्यते, एवम् उन्मिश्रम् जाकर, एकान्त जैसे 'अहे आरामंसि वा, अहे उवस्सयंसि वा' अथ आरामउघान बगीचा वगैरह एकान्त प्रदेश में, अथ-अथवा उपाश्रय में ही उसे ले जाकर अथवा जहां कि 'अप्पण्डे' अल्प शब्द नत्रर्थक होने से एकेन्द्रिय अण्डा नहीं हो या 'अप्पपाणे' अल्पप्राणे रस से जाप मान द्वीन्द्रिय वगैरह प्राणी नहीं हो या 'अप्पपीए' अल्पवीज-प्रस्फुट चना गोधूमवगैरह का बीज नहीं हो या 'अप्पहरिए' अल्पहरित-अङ्करभी वगैरह हरे भरे प्रदेश नहीं हो या 'अप्पोसे' अल्प अवश्याये जहां-बर्फ हिम नहीं हो या 'अप्पोदाए' अल्पोदके-कच्चापानी जहां नहीं हो या 'अप्पुतिग' अल्पोतिंग 'पणग-दग-मडिय-मकडा संताणए' पनक-दक-मृतिका-मर्कट सन्ताने-जहां उत्तिंग-घास के अग्र भाग में स्थित अलविन्दु, पनक-उल्ली नामका अत्यन्त छोटा जन्तु विशेष, दक मृतिका-पानी से मिली हुई मिट्टी नहीं हो, या मर्कट सन्ताने -सूक्ष्म जन्तु विशेषों का समूह नहीं हो ऐसे प्रदेश में 'विगिंचिय, विगिचिय' विविच्च विविच्च अशुद्ध अंशों
-'अहे आरामंसि वा अहे उवस्सयंसिधा' धान-माया विगेरे सात प्रदेशमा भयपा उपाश्रयमा तेन स मया न्यो 'अप्पंडे वा' म मय निषेपार्थ डापाथी भेन्द्रिय ४न य 124! 'अप्पपाणे वा' २५६५) २४थी उत्पन्न बना। दीन्द्रिय विगैरे प्राणी न डाय भय 'अप्पबीए' या, धई विगेरेना भी न डाय मा 'अप्पहरिए' भ७२ दुर्गविगेरे साहातरीवाणा प्रदेश न डाय अथवा 'अप्पो से ज्यi हम भ२३ न डाय 'अप्पोदए' आयु पाणी या न डाय अथवा 'अप्पुत्तिंगपणगदगः मट्टियमकडासंताणए' यांत्ति -घासना समागमा २स ४५ पन-Geyी નામના અત્યન્ત જીણું જન્તવિશેષ દકમૃત્તિકા–પાણીથી મળેલ માટી ન હોય અથવા म। विगैरे सूक्ष्म तु विशेषाना समूड न डाय ते प्रदेशमा 'विगिंचिय विगिचिय' अशुद्ध मशान २ ४शन 'उम्मिस्सं विसोहिय विसोहिय' प्राyि विरो३थी मणेस AAILE
श्री. सायसूत्र :४