Book Title: Aetihasik Jain Kavya Sangraha
Author(s): Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Shankardas Shubhairaj Nahta Calcutta

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Page 11
________________ IV कई महत्वपूर्ण त्रुटक और अपूर्ण कृतिएं १ भी जो हमें उपलब्ध हुई प्रकाशित कर दी गई हैं, यदि किसी सज्जनको उनकी पूर्ण प्रतियां मिलें तो हमें अवश्य सूचित करें । ऐ० काव्योंकी प्रचुरता जैसलमेर भण्डारकी सूची २ से ज्ञात होता है कि वहां भी एक त्रु० प्रति ३ में श्रीजिनपतिसूरि, जिनबल्लभसूरि के अपभ्रंश गाहामें वर्णन, जिनप्रबोध मुनिवर्णन, जिनकुशलसूरि वर्णन ( प्रति नं० ५२२ में) शेष श्रीजिनपतिसूरि स्तूपकलश ( नं० ३५८ के अन्तमें) और श्रीजिनलब्धिसूरि गुरुगीत ( पत्र २ नं० १५८६ में ) विद्यमान हैं, परन्तु अद्यावधि हमें ये उपलब्ध नहीं हुए, सम्भव है कि कुछ कृतिए वेही हों जो इस ग्रन्थमें प्रकाशित हैं* । खरतरगच्छका काव्य - साहित्य बहुत विशाल है । अपनीअपनी शाखाका साहित्य उनके श्रीपूज्योंके पास है आद्यपक्षीय १ श्रीजिनराजसूरिगस आदिकी गा० ९ ( पृ० १५०), श्रीजिनदत्तसूरि छप्पय आदि अन्त विहीन ( पृ० ३७३), श्रीकीर्तिरत्नसूरिफान आदिकी गा० २७ ( पृ० ४०१ ), श्रीजिनचन्द्रसूरिंगीत अपूर्ण ( पृ० १०१ ), विद्यासिद्धिगीत आदि त्रुटक ( पृ० २१४ ) । २ जेसलमेर के यतिवर्य लक्ष्मीचंदजो प्रेषित । ३ खरतरगच्छके आचार्योंके ऐतिहासिक गुण वर्णनात्मक काव्योंकी अन्य एक महत्वपूर्ण प्रति अजीमगंजके भंडार में थी, पर खेद है कि बहुत खोजनेपर भी वह उपलब्ध नहीं हुई । * देखें – “जैन साहित्यनो संक्षिप्त इतिहास" पृ० ९३७ से ९४६ ॥ - Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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