Book Title: Aetihasik Jain Kavya Sangraha
Author(s): Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Shankardas Shubhairaj Nahta Calcutta

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Page 10
________________ III राजपूताना प्रान्त बीकानेरमें विशेषकर खरतरगच्छका ही प्रचार और प्रभाव रहा है। अतएव हमें अधिकांश काव्य इसी गच्छके प्राप्त हुए हैं। तपागच्छीय काव्य एकमात्र "श्रीविजय सिंह सूरि विजयप्रकाश रास” उपलब्ध हुआ था वह और तत्पश्चात् उपाध्यायजी श्रीसुखसागरजी महाराजने पालोतानेसे "शिवचूला गणिनी विज्ञप्तिगीत" भेजा था उन दोनोंको भी प्रस्तुत ग्रन्थमें प्रकाशित कर दिया है । हमारे संग्रहमें कतिपय पार्श्वचंदगच्छीय ऐ० काव्य हैं, जिन्हें प्रकाशनार्थ मुनिवर्य जगत्चंद्रजी कनकचंद्रजीने नकल करली है अतः हमने इस संग्रहमें देना अनावश्यक समझा। प्रस्तुत ग्रन्थमें अधिकांश खरतरगच्छीय भिन्न-भिन्न शाखाओंके काव्योंका संग्रह है, एकही ग्रन्थमें एक विपयकी प्रचुर सामग्री मिलनेसे इतिहास लेखकको सामग्री जुटानेमें समय और परिश्रमकी बड़ी भारी बचत होती है। इस विशेषताकी ओर लक्ष्य देकर हमने अद्यावधि उपलब्ध सारे खरतरगच्छीय ऐ० काव्य प्रस्तुत संग्रहमें प्रकाशित कर दिये हैं, जिससे प्रत्युत विषयमें यह ग्रन्थ पूर्ण सहायक हो गया है। मूल पुस्तक छप जानेके पश्चात् श्रीजिनकूशलसूरि कृत श्रीजिनचन्द्रसूरि चतुःसप्ततिका और श्रीसूरचन्द्रगणि कृत श्रीजिनसिंहसूरिरास उपलब्ध हुए हैं, ग्रन्थके बड़े हो जानेके कारण उनको मूल प्रकाशित न करके ऐतिहासिकसार यथास्थान दे दिया है। संग्रहकी दृष्टिसे और शुद्ध प्रतियें मिल जानेसे पाठान्तर भेद सहित कतिपय अन्यत्र प्रकाशित काव्य भी इस ग्रन्थमें प्रकाशित किये हैं।* * देखें प्रति-परिचय । Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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