Book Title: Aetihasik Jain Kavya Sangraha
Author(s): Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Shankardas Shubhairaj Nahta Calcutta

View full book text
Previous | Next

Page 8
________________ प्राककथन जैनोंका प्राचीन इतिहास अस्तव्यस्त बिखरा हुआ है । ताम्रपत्र और शिलालेखों के अतिरिक्त संस्कृत, प्राकृत और लोकभाषा के काव्यों में भी प्रचुर इतिहाससामग्री उपलब्ध होती है, उन सबको संग्रहकर प्रकाशित करना नितान्त आवश्यक है । आर्य्य संस्कृति में गुरुका पद बहुत ऊंचा माना गया है उनकी भक्तिका महात्म्य अति विशाल है । धर्माचाय्यका इतिवृत्ति या जीवनचरित्र उनके भक्त शिष्यगुणानुवादरूप काव्यों में लिखा करते हैं, ऐसे काव्य जैनसाहित्य में हजारों की संख्या में हैं परन्तु खेद है कि शोधके अभावसे अधिकांश ( अमुद्रित काव्य ) प्राचीन ज्ञानभण्डारोंमें पड़े-पड़े नष्ट हो रहे हैं और अद्यावधि जैसा चाहिए वैसा इस दिशामें प्रयत्न हुआ ज्ञात नहीं होता । अद्यावधि प्रकाशित ऐ० काव्यसंग्रह ऐतिहासिक भाषा काव्योंके संग्रहरूपसे अद्यावधि प्रकाशित ग्रन्थ हमारे समक्ष केवल ७ ही हैं । जिनमें “ऐतिहासिक रास संग्रह " नामक ४ भाग और “ऐतिहासिक सझायमाला भा १” श्रीविजयधर्मसूरिजी और उनके शिष्य श्री विद्याविजयजी सम्पादित एवं श्री जिनविजयजी सम्पादित " जैन ऐतिहासिक गुर्जर काव्य संचय " और मोहनलाल दलीचंद देसाई B. A. L. L. B. संशोधित " जैन ऐतिहासिक रासमाला" नामसे प्रकाशित हुए हैं । Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 ... 700