Book Title: Adhyatma Pravachana Part 3
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 13
________________ ४ अध्यात्म-प्रवचन : भाग तृतीय भेद रहा है। जगत के अस्तित्व के सम्बन्ध में किसी भी दर्शन-परम्परा को सन्देह नहीं रहा। चार्वाक भो जगत के अस्तित्व को स्वीकार करता है। अन्य सभी दर्शन-परम्पराओं ने जगत के अस्तित्व को स्वीकार किया है और उसकी उत्पत्ति एवं रचना के सम्बन्ध में अपनी-अपनी पद्धति से विचार किया है। किसी ने उसका आदि और अन्त स्वीकार किया है और किसी ने उसे अनादि और अनन्त माना है। दर्शन-शास्त्र सम्पूर्ण सत्ता के विषय में कोई धारणा बनाने का प्रयत्न करता है । उसका उद्देश्य विश्व को समझना है । सत्ता का स्वरूप क्या है? प्रकृति क्या है ? आत्मा क्या है ? और ईश्वर क्या है ? दर्शन-शास्त्र इन जिज्ञासाओं का समाधान करने का प्रयत्न है । दर्शन-शास्त्र में यह भी समझने का प्रयत्न किया जाता है, कि मानव-जीवन का प्रयोजन और उसका मूल्य क्या है ? तथा जगत के साथ उसका क्या सम्बन्ध है ? इस दृष्टि से यह कहा जा सकता है, कि दर्शन-शास्त्र का निर्माण मनुष्य के विचार और अनुभव के आधार पर होता है । तर्क-निष्ठ विचार दर्शन का साधन रहा है। दर्शन तर्क-निष्ठ विचार के द्वारा सत्ता के स्वरूप को समझने का प्रयत्न करता है। पाश्चात्य-दर्शन में सैद्धान्तिक प्रयोजन की प्रधानता रहती है। वह स्वतन्त्र चिन्तन पर आधारित है, और आप्त-प्रमाण की उपेक्षा करता है। नीति और धर्म की व्यावहारिक बातों से वह प्रेरणा नहीं लेता, जबकि भारतीय दर्शन आध्यात्मिक-चिन्तन से प्रेरणा पाता है। वास्तव में भारतीयदर्शन एक आध्यात्मिक-शोध एवं खोज है। भारतीय-दर्शन सत्ता के स्वरूप की जो खोज करता है, उसके पीछे उसका उद्देश्य मानव-जीवन के चरम साध्य मोक्ष को प्राप्त करना है। सत्ता के स्वरूप का ज्ञान इसलिए आवश्यक है, कि वह निःश्रेयस एवं परम-साध्य को प्राप्त करने का एक साधन है। इसी आधार पर यह कहा जाता है, कि भारतीय-दर्शन अपने मूल स्वरूप में एक आध्यात्मिक दर्शन है, भौतिक-दर्शन नहीं। यद्यपि भारतीय दर्शन में भौतिकता की व्याख्या को गई है, फिर भी उसका मूल स्वभाव आध्यात्मिकता हो रहा है । इसका सर्वप्रथम प्रमाण तो यह है, कि भारत में धर्म और दर्शन को परस्पर एक दूसरे पर आश्रित माना गया है । परन्तु धर्म का अर्थ अन्धविश्वास नहीं, बल्कि तर्क-पूर्ण अनुभव माना गया है। भारतीय परम्परा के अनुसार धर्म आध्यात्मिक शक्ति को प्राप्त करने का एक व्यावहारिक उपाय एवं साधन है । दर्शन-शास्त्र सत्ता की मीमांसा करता है, और उसके स्वरूप को विचार के द्वारा पकड़ता है, जिससे मोक्ष की प्राप्ति होती है। अतः Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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