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प्रथम अध्याय
कवि द्यानतराय का जीवन परिचय एवं व्यक्तित्व
जीवन परिचयः संस्कृत एवं हिन्दी के अधिकांश कवियों ने अपनी रचनाओं में न अपना कोई परिचय दिया है और न कोई प्रामाणिक साक्ष्य ही तत्सम्बन्ध में उपलब्ध है। ऐसी परिस्थिति में कवि की रचना में उपलब्ध किसी ऐसी पंक्ति का सहारा लेना पड़ता है, जिसमें उसके परिचय की ओर संकेत हो। कवि द्यानतराय के सम्बन्ध में भी यही कथन चरितार्थ होता है। उनके शतकों एवं पदों में कहीं-कहीं उनके जन्म, शिक्षा इत्यादि के बारे में ज्ञात होता है, जिसका वर्णन इस अध्याय में आगे किया जा रहा है। .
_1. नाम- द्यानतराय का मूल नाम द्यानतराय ही था, किन्तु उन्होंने अपने पदों एवं पूजनों में 'द्यानत' शब्द का ही प्रयोग किया है परन्तु उनकी प्रसिद्धि 'द्यानतराय' के नाम से ही है। प्रायः उनकी सभी प्रकाशित रचनाओं में द्यानतराय नाम ही देखने को मिलता है। वैसे 'द्यानत' शब्द का व्युत्पत्ति अर्थ 'ध्यान में रत रहने वाला' माना जाता है। उदाहरण स्वरूप -
'द्यानत' धरम दश पैड़ि चढ़ि के शिव महल में पग धरा।' इस तरह आलोच्य कवि का नाम द्यानतराय,ही मिलता है।
2. शिक्षा- द्यानतराय का बाल्यकाल आगरा शहर में ही व्यतीत हआ। उस समय आगरा जैनशिक्षा का अच्छा केन्द्र था। आगरा में उस समय विभिन्न शैलियाँ प्रचलित थीं। शैली में पढ़कर ही द्यानतराय ने उर्दू, फारसी एवं संस्कृत का ज्ञान प्राप्त किया था। शैली में पढ़कर द्यानतराय को देव-शास्त्र-गुरु के प्रति श्रद्धा तथा अध्यात्म का ज्ञान हुआ। उनके गुरुओं ने उन्हें धार्मिक ग्रन्थों का संस्कृत के माध्यम से पठन-पाठन कराया, जिसके फलस्वरूप वह एक निपुण आध्यात्मिक कवि बन सके।
. कवि के समकालीन आगरा में मानसिंह जौहरी एवं उनके शिष्य बिहारीदास जैनधर्म के प्रकाण्ड विद्वान एवं सुकवि थे। द्यानतरायजी उनके जीवन एवं चरित्र से अत्यधिक प्रभावित हुए। युवावस्था में जब द्यानतराय , दिल्ली आये तो सुखानन्द की शैली के सदस्य बन गये।