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142-182
(3) अध्यात्म विभिन्न मनीषियों की दृष्टि में (4) अध्यात्म का महत्त्व (ख) द्यानतरायजी के काव्य में अध्यात्म (1) आत्मा-परमात्मा पर विचार। (2) जगत सम्बन्धी विचार । (3) कर्म सिद्धान्त सम्बन्धी विचार ।(4) मोक्ष सम्बन्धी विचार । (5) मनुष्य जन्म की दुर्लभता पर विचार (6) राग-द्वेष-मोह तथा कषाय की बाधकता पर विचार (7) द्यानतराय के अज्ञान के अभाव के विषय में विचार (8) सद्गुरु का महत्त्व (9) साधक की अनिवार्यता सम्बन्धी विचार
(10) आस्रव निरोध की चर्चा तथा संवर, निर्जरा की चर्चा चतुर्थ अध्याय : द्यानतराय की अध्यात्म निरूपणा
(क) चारित्रगत निरूपणा : (1) इन्द्रिय संयम की आवश्यकता (2) मन संयम की आवश्यकता (3) प्राणी रक्षा की बात (4) अन्तरंग एवं बाह्य शुद्धि का वर्णन (5) दशधर्म का वर्णन (6) सत्संग की चर्चा (7) बाह्य आडम्बर का विरोध (8) व्यवहार साधना मार्ग (9) निश्चयसाधना का मार्ग (10) सयोग केवली तथा जीवन मुक्त की स्थिति का वर्णन
(ख) साधनागत निरूपणा : (1) सात तत्त्वों का निरूपण (2) छह द्रव्यों का निरूपण (3) आत्मतत्त्व का वर्णन (4) रत्नत्रय का प्रतिपादन (5) मिथ्यादर्शन-ज्ञान-चारित्र का वर्णन (6) नवपदार्थ का वर्णन
(7) स्वानुभव का वर्णन पंचम अध्याय : द्यानतराय के काव्य में अभिव्यक्त कलापक्ष 183-210
(1) भाषा, पूजन साहित्य की भाषा, चर्चा शतक की भाषा,
विभिन्न शतक, बावनी व अष्टक साहित्य की भाषा,
फुटकर रचनाओं की भाषा। (2) छन्द विधान (3) अलंकार विधान
(4) प्रतीक विधान (5) मुहावरे और कहावतें षष्ठ अध्याय : उपसंहार
211-214