Book Title: Adarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Author(s): Krushnalal Varma
Publisher: Granthbhandar Mumbai

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Page 11
________________ (घ) उसके लिए 'मिच्छामि दुक्कड' देता हूँ। किसीका मन दुखानेका इरादा बिल्कुल ही नहीं है। . इसमें 'आप' शब्दका प्रयोग सिर्फ इस चरित्रके नायकके लिए ही किया गया है औरोंके लिए नहीं । इससे किसीको यह खयाल न करना चाहिए कि, दूसरोंके लिए 'आप' शब्द न लिखकर उनका अपमान किया गया है। अनेकोंके लिए 'आप' शब्दका उपयोग करनेसे समझनेमें गड़बड़ी होनेकी संभावना थी। चरित्र स्वतंत्र रूपसे लिखा और प्रकाशित कराया जा रहा है। इसमें किसीसे किसी तरहकी आर्थिक सहायता धर्मके या गुरुभक्तिके नामसे नहीं ली गई है। हाँ पहलेसे ग्राहक बनानेका प्रयत्न अवश्य मेव किया गया है। और जिन सज्जनोंने पहलेसे ग्राहक होकर मुझे उत्साहित किया है उनका उपकार मानता हूँ। महावीर जैनविद्यालयके संचालकोंसे पाँच ब्लॉक छापनेके लिए मिले इस लिए उनका भी उपकार मानता हूँ। अनेक परिस्थितियोंके कारण चरित्रको मैं जिस रूपमें पाठकोंके सामने रखना चाहता था उस रूपमें न रख सका, इसका मुझे खेद है; मगर जिस रूपमें पाठकोंके सामने आ रहा है वह भी उत्तम है और भक्तोंकी मनस्तुष्टिके लिए सम्पूर्ण है। पूजा और पदवीप्रधानका वर्णन लाहोरवालोंका प्रकाशित ही हुबहू दे दिया है भाषाभाव सभी उसीमेंके हैं। इस चरित्रमें केवल लाहोरके चौमासे तकका ही वर्णन है। आगेकी बातें फिर कभी पाठकोंको भेट की जायेंगी। भूलचूकके लिए क्षमा प्रार्थी, जैनत्वका सेवक - कृष्णलाल वर्मा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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