Book Title: Adarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Author(s): Krushnalal Varma
Publisher: Granthbhandar Mumbai

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Page 10
________________ ( ग ) उसी समय से मैं सम्पूर्ण चरित्र लिखनेके लिए सामग्री इकट्ठी करमें लगा । कारण पंन्यासजी महाराजको भी चरित्र मालूम नहीं था, तो भी मैं यह कहे बिना नहीं रह सकता कि, चरित्र लिखनेके लिए सामग्री जुटा देनेकी सहायता पूर्ण रूपसे पंन्यासजी महाराज ललितविजयजीने ही दी है । इस लिए मैं उनका अत्यंत कृतज्ञ हूँ । १०८ उपाध्यायजी महाराज श्री सोहनविजयजी से प्रार्थना करने पर उन्होंने स्वतंत्र रूपसे, जितना हाल उन्हें मालूम था, उतना लिख भेजनेका कष्ट उठाया इस लिए उनके प्रति भी कृतज्ञता प्रकट करता हूँ । १०८ पंन्यासजी महाराज श्रीउमंगविजयजी गणी, मुनिश्री प्रभाविजयजी महाराज, मुनि श्रीचरणविजयजी महाराज, और होशियारपुरके लाला नानकचंदजीका भी उपकार मानता हूँ कि जिनके द्वारा मुझे अनेक बातें मालूम हुई हैं । 'आत्मानंद जैनपत्रिका ' लाहोर ( हिन्दी ) और 'श्रीआत्मानंदप्रकाश' भावनगर (गुजराती) के संपादकों का भी उपकार मानता हूँ । क्योंकि पुराने बहुतसे हालात इन्हीं पत्रोंकी पुरानी फाइलोंसे मुझे मालूम हुए हैं । इनके अलावा उन सज्जनोंका भी उपकार मानता हूँ जिनसे कुछ बातें मालूम हुई हैं; परन्तु जिनके नाम मुझे याद नहीं रहे हैं । इसमें एक दो घटनाएँ ऐसी छोड़ दी गई हैं, जो यद्यपि आपके चरित्रको महिमान्वित करने वाली थीं, किन्तु दूसरोंके हृदयोंमें दु:ख पहुँचाने वाली थीं । मैंने लिखते समय इस बातका खास ध्यान रक्खा है कि, कोई ऐसी बात न लिखी जाय जिससे किसीका मन दुखे; तो भी छद्मस्थावस्थाके कारण किसीको किसी बातसे दुःख पहुँचे तो । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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