Book Title: Adarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji Author(s): Krushnalal Varma Publisher: Granthbhandar Mumbai View full book textPage 8
________________ (क) प्राक्कथन । हों सन्त जिस पथके पथिक, पावन परम वह पंथ है। आचरण ही उनका जगत् में पथ-प्रदर्शक ग्रंथ है ॥ जो जमानेकी आवश्यकताको समझकर, लोकोपकार करते हैं; लोगोंकी भलाईमें ही अपना जीवन बिताते हैं; जीवनका प्रत्येक श्वासोश्वास जिनका परोपकारके लिए होता है; प्रत्येक विचार जिनका दूसरोंको लाभ-आत्मलाभ-पहुँचानेके लिए होता है; जिनका जीवन सदा सत्यमय होता है; इन्द्रिय संयमका जो आचरणीय पाठ पढ़ाते हैं; रागद्वेषकी परिणति दूर हो और वीतरागभाव फैले इसी उद्देश्यसे जो जीवनकी प्रत्येक क्रिया करते हैं; वे महात्मा धन्य हैं, उनका जीवन सफल है और उन्हींका जीवन आदर्श जीवन है । ऐसे आदर्शजीवनसे जो शिक्षा मिलती है और हमारे जीवनमें जो परिवर्तन हो जाते हैं; वे सैकडों, हजारों उपदेशोंसे भी नहीं होते । इसी लिए भक्त तुलसीदासजी कह गये हैं एक घड़ी आधी घड़ी, आधीमें भी आध। तुलसी संगति साधुकी, कटे कोटि अपराध ___ यदि प्रत्यक्ष साधु-महात्माकी संगति नहीं मिले तो उनकी जीवन-कथा भी हमें अनेक अपराधोंसे छुड़ा सकती है। आज पाठकोंके हाथोंमें, ऐसे ही एक आदर्शजीवनको देते हमें बड़ी प्रसन्नता होती है । आशा है पाठक इस जीवनसे स्वयं लाभ उठायँगे और अपने इष्ट मित्रोंको भी उठानका अवसर देंगे। गये चौमासेमें अर्थात् सं० १९८१ के चौमासेमें १०८ पंन्यासजी महाराज .. श्रीललितविजयजी गणीने १००८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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