Book Title: Aagam 42 DASHVAIKAALIK Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 501
________________ आगम “दशवैकालिक”- मूलसूत्र-३ (मूलं+नियुक्ति:+|भाष्य|+वृत्ति:) अध्ययनं [९], उद्देशक [२], मूलं [१५...] / गाथा ||१०-११|| नियुक्ति: [३२७...], भाष्यं [६२...] (४२) प्रत सूत्रांक ११|| ट्रिआ ॥ १०॥ तहेव सुविणीअप्पा, देवा जक्खा अ गुज्झगा । दीसंति सुहमेहंता, इद्धि पत्ता महायसा ॥ ११॥ एतदेव विनयाविनयफलं देवानधिकृत्याह-तहेवत्ति सूत्रं, 'तथैव' यथा नरनार्यः 'अविनीतात्मानो भवान्तरेऽकृतविनयाः 'देवा' वैमानिका ज्योतिष्का 'यक्षाच' व्यन्तराश्च 'गुह्यका भवनवासिनः, त एते दृश्यन्ते आगमभावचक्षुषा दुःखमेधमानाः पराज्ञाकरणपरबृद्धिदर्शनादिना, आभियोग्यमुपस्थिता:-अभि-13 योगः-आज्ञाप्रदानलक्षणोऽस्यास्तीत्यभियोगी तद्भाव आभियोग्यं कर्मकरभावमित्यर्थः उपस्थिताः-प्राप्ता इति सूत्रार्थः ॥१०॥ विनयफलमाह तहेवत्ति सूत्रं, 'तथैवेति पूर्ववत्, 'सुविनीतात्मानों जन्मान्तरकृतविनया निरतिचारधर्माराधका इत्यर्थः, देवा यक्षाश्च गुह्यका इति पूर्ववदेव, दृश्यन्ते सुखमेधमाना अर्हत्कल्याणादिषु 'ऋद्धिं प्राप्ता' इति देवाधिपादिप्राप्सर्द्धयो ‘महायशसों विख्यातसद्गुणा इति सूत्रार्थः ॥ ११ ॥ जे आयरिअउवज्झायाणं, सुस्सूसावयणकरा । तेसिं सिक्खा पवइंति, जलसित्ता इव पायवा ॥ १२ ॥ अप्पणट्रा परट्रा वा, सिप्पा उणिआणि अ । गिहिणो उवभोगद्रा, इहलोगस्स कारणा ॥ १३ ॥ जेणं बंधं वहं घोरं, परिआवं च दारुणं । सिक्खमाणा दीप अनुक्रम [४४१-४४२] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित......आगमसूत्र-[४२], मूल सूत्र-[३] “दशवैकालिक” मूलं एवं हरिभद्रसूरि-विरचिता वृत्ति: ~500~

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