Book Title: Aagam 42 DASHVAIKAALIK Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 532
________________ आगम “दशवैकालिक”- मूलसूत्र-३ (मूलं+नियुक्ति:+|भाष्य|+वृत्ति:) अध्ययनं [१०], उद्देशक [-], मूलं [४...] / गाथा ||७...|| नियुक्ति: [३५७], भाष्यं [६२...] (४२) १०सभिक्ष्यध्यक प्रत सूत्रांक ||७..|| दशवैका० अप्कायादीन् यः पिबति, तत्त्वतो विनाऽऽलम्बनेन, कथं न्वसौ भिक्षुः, नैव भावभिक्षुरिति गाथार्थः ॥ उक्त हारि-वृत्तिः । उपनयः, साम्प्रतं निगमनमाह तम्हा जे अझयणे भिक्खुगुणा तेहिं होइ सो मिक्खू । तेहि अ सउत्तरगुणेहि होइ सो भाविभतरो छ । ३५८ ।। ॥२६४॥ यस्मादेतदेवं यदनन्तरमुक्तं तस्माद येऽध्ययने प्रस्तुत एव 'भिक्षुगुणा' मूलगुणरूपा उक्तास्तैः करणभूतैः सद्भिर्भवत्यसी भिक्षुः, तैश्च 'सोत्तरगुणैः पिण्डविशुद्धयागुत्तरगुणसमन्वितैर्भवत्यसौ 'भावितत' चारित्रधर्मे तु प्रसन्नतर इति गाथार्थः ॥ उक्तो नामनिष्पन्नो निक्षेपः, साम्प्रतं सूत्रालापकनिष्पन्नस्यावसर इत्यादिचर्चः पूर्ववत्तावद्यावत्सूत्रानुगमेऽस्खलितादिगुणोपेतं सूत्रमुच्चारणीयं, तवेदम् निक्खम्ममाणाइ अ बुद्धवयणे, निच्चं चित्तसमाहिओ हविज्जा । इत्थीण वसं न आवि गच्छे, वंतं नो पडिआयइ जे स भिक्खू ॥१॥ पुढविं न खणे न खणावए, सीओदगं न पिए न पिआवए । अगणिसत्थं जहा सुनिसिअं, तं न जले न जलावए जे स भिक्खू ॥ २॥ अनिलेण न वीए न वीयावए, हरियाणि न छिदे न छिंदावए । बीआणि सया विवजयंतो, सञ्चित्तं नाहारए जे स भिक्खू ॥३॥ वहणं त AACROSSEX दीप अनुक्रम [४८४..] ॥२६४ मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित......आगमसूत्र-[४२], मूल सूत्र-[३] “दशवैकालिक” मूलं एवं हरिभद्रसूरि-विरचिता वृत्ति: ~531~

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