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अच्छी सुख–पूर्ण देव की है। वैमानिकादि देवताओं के गमनागमन-गति के क्षेत्र की बात करते हुए तत्त्वार्थकार महर्षी इस श्लोक में कहते हैं कि... जैसे जैसे ऊपर-ऊपर के देवलोक के देवताओं के बारे में विचार करें तो वे गति, शरीर, परिग्रह और अभिमान आदि का प्रमाण कम-कम होता ही जाता है।
इन देवताओं की शक्ती अचिन्त्य है । ये देवता क्षणभर में अपनी वैक्रिय शक्ती से पलभर में कितने ही अरबों खरबों योजन अन्य क्षेत्र में लम्बे जा सकते हैं । २ सागरोपम से कम स्थितिवाले देव नीचे अधोलोक में सातवीं नरक पृथ्वी तक जा सकते हैं। २ सागरोपम से भी ज्यादा स्थितिवाले देवता तिर्यक् लोक में असंख्य कोडाकोडी योजनों तक भी गति कर सकते हैं। आगे की ज्यादा स्थितिवाले देवता १-१ नरक पृथ्वी कम–कम जाते हैं। कम से कम तीसरी नरक तक सभी देवता जा सकते हैं। क्वचित्-कदाचित् जानेवालों में सीतेन्द्र देव की बात शास्त्रों में आती है। सबसे ऊपर के ऊँची कक्षा के देवता जो महानुभाव के स्वभाव जैसे होते हैं अतः वे गति आदि करके जाने में उदासीन होते हैं । एक मात्र तीर्थंकर भगवंतों के पंचकल्याणक प्रसंगों पर धार्मिक श्रद्धा-भावना के कारण निकलते हैं । परन्तु कल्पातीत देवलोक के ग्रैवेयक एवं अनुत्तर विमानवासी देवता तो ऐसे प्रसंगों पर भी न जाते हुए अपने स्वाध्याय-ज्ञान-ध्यान में तल्लीन रहते हैं।
शारीरिक ऊँचाई- देवताओं का जो मूल शरीर है उसकी ऊँचाई सबकी भिन्न-भिन्न है। पहले-दूसरे सौधर्म तथा ईशान इन २ देवलोक के देवताओं के शरीर की ऊँचाई -
७ हाथ प्रमाण है। तीसरे + चौथै स्वर्ग के देवताओं के शरीर की ऊँचाई -
६ हाथ प्रमाण ५ + ६ टे स्वर्ग के देवताओं के शरीर की ऊँचाई -
५ हाथ प्रमाण ७ वे + ८ वे स्वर्ग के देवताओं के शरीर की ऊँचाई -
४ हाथ प्रमाण ९ + १० + ११ वे तथा १२ वें स्वर्ग के देवताओं के शरीर की ऊँचाई -
३ हाथ प्रमाण नौं ग्रैवेयकों के देवताओं के शरीर की ऊँचाई -
सिर्फ १ हाथ प्रमाण इस तरह शरीर की ऊँचाई-देहमान घटता-हुआ भिन्न-भिन्न प्रकार का है।
विमानों की संख्या के बारे में भी पहले विचार कर चुके हैं । उसमें पुनः देखने पर देवताओं के विमानों की संख्या जैसे जैसे ऊपर-ऊपर के देवताओं का विचार करें
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आध्यात्मिक विकास यात्रा