Book Title: Aadhyatmik Vikas Yatra Part 01
Author(s): Arunvijay
Publisher: Vasupujyaswami Jain SMP Sangh

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Page 491
________________ भी होने की संभावना कभी भी नहीं है । इस तरह से संख्या प्रमाण की दृष्टि से सभी गति और जातियों में मिथ्यात्वी जीवों की संख्या अनेकगुनी ज्यादा ही रही है । और भविष्य में भी रहनेवाली है। आप सोचिए, सदा काल शाक-सब्जी - तरकारियाँ बेचनेवालों की संख्या अनेक गुनी ज्यादा ही रही है जबकि हीरे-मोती रत्नादि बेचनेवाले जौहरियों की संख्या सदा काल कम ही रही है। ठीक ऐसी ही स्थिति मिथ्यात्व - सम्यक्त्व में है । कालिक दृष्टि से ३ प्रकार १) अनादि - अनन्त २) अनादि - सान्त ३) सादि - सान्त १) अनादि - अनन्त - मिथ्यात्व 1 अभवी जीव अनादि काल से इस संसार में है और महामिथ्यात्व से ग्रस्त है अभव्यत्व की कक्षा होने के कारण अनन्त काल में कभी भी मोक्ष में जानेवाले भी नहीं है । अभवी का मिथ्यात्व कभी भी बदलनेवाला, नष्ट होनेवाला भी नहीं है । इनको कदापि सम्यक्त्व होनेवाला भी नहीं है । अतः सदाकाल वह मिथ्यात्वी ही रहेगा । अतः अभव्य की अपेक्षा से अभवी का मिथ्यात्व अनादि - अनन्त कालिक है । २) अनादि - सान्त - भव्य जीव जिसका मिथ्यात्व अनादि काल से जरूर होता है । परन्तु भव्य जीव मोक्षगामी है । और मोह सम्यग् दर्शन के सिवाय संभव ही नहीं है । अतः भव्य जीव सम्यग् दर्शन कभी न कभी अवश्य प्राप्त करता ही है । अतः भव्य आत्मा का मिथ्यात्व अनादि - सान्त की कक्षा का है । सान्त अर्थात् अन्त सहित । ३) सादि - सान्त I जो जीव एक बार सम्यक्त्व प्राप्त करके वमन कर देते हैं, खो बैठते हैं और वापिस मिथ्यात्व धारण कर लेते हैं, उन जीवों का वैसा मिथ्यात्व सादि - सान्त की कक्षा का है सादि अर्थात् शुरुआत, आरम्भ और सान्त अर्थात् अन्त आना । ऐसे भव्य जीव जो सम्यक्त्व खोकर वापिस मिथ्यात्वी बन जाते हैं उनका मिथ्यात्व सादि - सान्त की कक्षा का है । इस तरह कालिक दृष्टि से मिथ्यात्व के तीन भेद -तीन कक्षाएँ दर्शाई गई हैं । ४३० आध्यात्मिक विकास यात्रा

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