Book Title: Aadhyatmik Vikas Yatra Part 01
Author(s): Arunvijay
Publisher: Vasupujyaswami Jain SMP Sangh

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Page 494
________________ ५) कुलिंगी संस्तव - अन्य मिथ्यामति–कुलिंगी आदि के सद्भूत या असद्भूत गुणों आदि का वचन द्वारा कीर्तन करना भी अतिचार है । दोष है । सम्यक्त्व रत्न जिसने पाया है उसके पास खजाना है । अतः उसकी जिम्मेदारी है अपने खजाने की रक्षा करने की । मिथ्यात्वी- जिसने कुछ भी पाया ही नहीं है तो फिर उसे किसकी रक्षा करनी है ? उसका कोई नुकसान नहीं है। जो कुछ नुकसान है वह सम्यग्दर्शन पानेवाले को है। इसीलिए सम्यग् श्रद्धावंत को मिथ्यात्व का रूप-स्वरूप अच्छी तरह पहचान लेना चाहिए और तदनुरूप जीवन बनाना चाहिए। मिथ्यात्व क्या है ? कैसा है ? इससे फायदा-नुकसान आदि क्या होता है इत्यादि समझना ही चाहिए। यह समझ में आ सके इसके लिए यहाँ मिथ्यात्व का विशद विवेचन किया है । आत्मा के जो शत्रु हैं उनको भी अच्छी तरह पहचानेंगे तो ही छोड सकेंगे । उनसे छटने-बचने का उपाय कर सकेंगे । अन्यथा संभव नहीं है। कई बार भ्रांति-भ्रमणा से दोष –विपरीत भाव भी अच्छे लगते हैं । किंपागफलवत् मीठे लगते हैं । अतः अनर्थकारी दोषों-आत्मशत्रुरूप मिथ्यात्वादि को अच्छी तरह पहचान-समझकर उसे छोडने का, उससे बचने का प्रबल पुरुषार्थ करके आगे बढने रूप विकास साध सकें यही सर्वश्रेष्ठ उपाय है-सर्वोत्तम मार्ग है । इस मार्ग को सभी प्राप्त करें और मिथ्यात्व का सर्वथा क्षय करके सम्यक्त्व प्राप्त करने में सफलता प्राप्त करें ऐसी शुभ अभिलाषा । ॥ इति शम् ॥ ४३३

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