Book Title: Aadhyatmik Vikas Yatra Part 01
Author(s): Arunvijay
Publisher: Vasupujyaswami Jain SMP Sangh

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Page 435
________________ एक जैसे ही हैं। वैसे ही मोक्ष तक पहुँचने के लिए सभी धर्ममार्ग एक जैसे हैं । इसलिए सभी धर्म एक सरीखें हैं । ऐसी मान्यता अनभिग्रहिक मिथ्यात्वी की होती है। ऐसा मिथ्यात्वी भेल-सेल-मिलावट-मिश्रण करनेवाले व्यापारी के जैसा होता है। वह अच्छे-खराब सबका मिश्रण करके चलता है। रागी और वीतरागी, द्वेष और क्षमाशील, क्रोधी और समता के सागर, सर्वज्ञ और कर्मसहित, अनभिग्रहिक मिथ्यात्वी सभी को एक जैसे भगवान के रूप में ही मानता है क्योंकि उसकी बद्धि ही वैसी है। वह न तो परीक्षा करता है और न ही तुलना करता है। जैसे मणि-कांच-सोना-पीतल, हीरा-पत्थर, दूध-छाछ आदि सभी को एक मानने की बात करता है । मुख्य कहना तो यह है कि ऐसे मिथ्यात्वी में दरअसल या तो ज्ञान ही नहीं है या तुलना करने की बुद्धि ही नहीं है। इसमें यथार्थ समझ का अभाव एवं सरलता मुख्य रूप से कारण बनती है। मतिमंदता एवं जडता के मुख्य कारण से वह मिथ्यात्वी रहता है। जैसे एक फेरीवाला अपने माल की बिक्री के लिए रास्ते पर चिल्लाता रहता है। सब एक-एक रुपया, कोई भी वस्तु खरीदो, सब एक-एक रुपया । ऐसा फेरीवाला जो दस पैसे, चार आने, आठ आने की वस्तु की कीमत भी एक रुपया, और दो-चार-आठ रुपये की वस्तु की कीमत भी एक रुपया, इस तरह सब को एक जैसी बताता है। वैसे ही अनभिग्रहिक मिथ्यात्वी जीव भी सच्चे-झूठे, त्यागी-भोगी सभी भगवान, गुरु और धर्म को एक जैसा ही मानता है । यह उनकी अनभिग्रहिक मिथ्यावृत्ति है । कई बार इस प्रकार के मिथ्यात्वी जीव ऐसा कहकर अपनी बात किसी के दिमाग में ठसाते हैं कि- अरे भाई ! मैं तो उदार वृत्तिवाला हूँ, विशाल भावना वाला हूँ, मैं संकुचितवृत्तिवाला नहीं हूँ। इसलिए सभी भगवान को और सभी धर्म को एक ही मानता हूँ । इसलिए ऐसी उदार या विशाल भावना के कारण मैं बड़ा एवं महान् बनना चाहता हूँ । इस तरह वह अपनी वृत्ति दूसरों को भी समझाता है। स्वाभाविक है कि शब्दों की ऐसी मीठी जाल से दूसरे उसकी मिथ्यावृत्ति की भी प्रशंसा करने लग जाते हैं और उसे एक अच्छा उदार दिल, विशाल भावनावाला मानने लगते हैं। ___ अनभिग्रहिक मिथ्यात्वी की ऐसी विचारधारा एवं विशालता और उदारता के बारे में यदि महातर्क-युक्ति एवं बुद्धिपूर्वक सोचें तो कुछ और ही लगेगा। तर्क-युक्ति से ऐसी दुविधा खड़ी करते हैं कि- १) जितना पीला है उतना सोना है, या जितना सोना है उतना पीला है । २) जो चमकती है वह चांदी है या जो चांदी है वह चमकती है । ३) जो स्त्री है वह माता है या जो माता है वह स्त्री है । ४) जहाँ धुंआ होता है वहाँ अग्नि रहती है या जहाँ अग्नि होती है वहाँ धुंआ रहता है । ५) जो मनुष्य है वह खाता है या जो खाता है ३७४ आध्यात्मिक विकास यात्रा

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