Book Title: Aadhyatmik Vikas Yatra Part 01
Author(s): Arunvijay
Publisher: Vasupujyaswami Jain SMP Sangh

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Page 449
________________ पुण्य-पाप, धर्म-अधर्म मोक्षादि सभी तत्त्वभूत अस्तित्ववाले सभी पदार्थों को यथार्थ शुद्धस्वरूप में मानते हैं । अतः उनको नास्तिक किस आधार पर कहना? अब इन सभी तत्त्वभूत पदार्थों के अतिरिक्त ऐसा कौनसा पदार्थ शेष बचता है जिसको कि जैन नहीं मानते हैं? या जैन इतने जो सभी अस्तित्त्वधारक पदार्थ मानते हैं इससे और ज्यादा किन पदार्थों को वेदान्ति या नैयायिक मानते हैं? ऐसा एक भी पदार्थ नहीं मिलेगा जिसके बारे में वैदिक-नैयायिक मानते हैं और उसे जैन नहीं मानते हो । हाँ, शर्त इतनी ही है कि... उस तत्त्वभूत पदार्थ का अस्तित्व जरूर होना ही चाहिए। लेकिन आत्मा से मोक्ष तक के सभी पदार्थों में ऐसी एक भी अस्तित्वधारक पदार्थ नहीं है जिसको जैनों से अतिरिक्त रूप में वैदिक या नैयायिक-वैशेषिक मानते हों। हाँ, यदि सभी दर्शनों में तुलना की जाय तो यह स्पष्ट होगा कि... सर्वज्ञवादी जैन आत्मादि पदार्थों का स्वरूप ज्यादा शुद्ध स्पष्ट और सत्य यथार्थ वास्तविक स्वीकारते हैं। जबकि वैदिक-नैयायिक-मीमांसक आदि आकाश-शब्द-अंधकार आदि कई पदार्थों का यथार्थ स्वरूप न स्वीकार कर मनघडंत व्याख्या कर रहे हैं । उदाहरण के लिए शब्द जो पुद्गलजन्य पौद्गलिक परमाणुस्वरूप अस्तित्वधारक द्रव्य है, ऐसे शब्द को उन्होंने आकाश का गुण कहकर छोड दिया है । वास्तव में हकीकत यह है कि....शब्द पौद्गलिक द्रव्य है जो परमाणु स्वरूप है । द्रव्य को गुण कह देना या गुण को द्रव्य कह देना ऐसी विपरीत मान्यता सत्य ज्ञान के क्षेत्र में कैसे चल सकती है? यथार्थ सत्यस्वरूप न मानकर भी यह कह देना कि जैन पदार्थ का सत्य स्वरूप नहीं मानते हैं अतः वे नास्तिक हैं इससे बडी अज्ञानता जगत में और क्या हो सकती है? ____ अंधकार अपने आप में तथा प्रकार के पौद्गलिक परमाणुओं का पिण्डरूप समूहात्मक द्रव्य है । और इसे भी तेजाभाव तम कह देने मात्र से कैसे चलेगा? वर्तमान में विज्ञान ने भी अपने यन्त्रादि द्वारा शब्द का ग्रहण किया है । छायाचित्रादि द्वारा अन्धकार का स्वरूप भी स्पष्ट कर दिया है । हम यह नहीं कहते हैं कि विज्ञान की मुहर लगे तो ही पदार्थ का सत्य स्वरूप प्रकट होता है । जी नहीं । विज्ञान तो जड पदार्थों पर ही आधारित है और मात्र जड पदार्थों का ही विचार करनेवाला है । विज्ञान कोई दर्शन नहीं है। यह कोई सर्वज्ञवादी दर्शन भी नहीं है । आधुनिक विज्ञान मात्र प्रयोगों एवं प्रयोगशालाओं पर आधारित है । अतः विज्ञान के सिद्धान्त परिवर्तनशील हैं । एकसत्यवादिता विज्ञान के क्षेत्र में नहीं है जो सत्य का अन्तिम स्वरूप-चरम सत्य के रूप में प्रतिपादन कर सके ऐसी और इतनी क्षमता वर्तमान जडाधारित विज्ञान के पास सर्वथा नहीं है । फिर भी टी. वी , ३८८ आध्यात्मिक विकास यात्रा

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