Book Title: Aadhyatmik Vikas Yatra Part 01
Author(s): Arunvijay
Publisher: Vasupujyaswami Jain SMP Sangh

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Page 483
________________ पास ही लगता है । जैसे नाविक को किनारा पास लगता है वैसे सम्यक्त्व का किनारा पास 1 लगता है । अतः ध्यान रखिए... दर्शन - वंदन पूजनादि धर्माराधनाओं का महत्व कितना गुना ज्यादा है ? इनका अस्तित्व कितना महत्वपूर्ण है ? यदि... दर्शन - वंदन - पूजनादि की धर्मक्रियाओं का कोई आलंबन सर्वथा न रखें तो इन जीवों के लिए सम्यक्त्व की प्राप्ति की संभावना कितनी नहींवत् हो जाएगी ? समुद्र में रहना और तैरने के लिए नौका नहीं, कितनी विपरीत विरोधाभासी बात है ? क्या बिना नौका- जहाज के आलंबन के आप स्वयं अपने हाथ से सारा समुद्र तैर सकोगे ? और क्या सभी इतने और ऐसे समर्थ-सक्षम हैं ? ... जी नहीं । संभव नहीं है । तो फिर इस संसार रूप भयंकर समुद्र से पार उतरने के लिए देव-गुरु-धर्म की आराधना उपासना करनी अत्यन्त आवश्यक है । और इस प्रकार की आराधना के लिए क्रियात्मक स्वरूप दर्शन-वंदन-पूजनादि की अनिवार्यता कई गुनी ज्यादा है । और ऐसी आराधना-उपासना करने के लिए.. उनका - देवाधिदेव परमात्मा का गुरु एवं धर्म का आलंबन लेना नितान्त आवश्यक है । परमात्मा के आलंबन के लिए मंदिर - मूर्ति का आलंबन उपयोगी है। गुरु भगवंत के आलंबन के लिए गुरुओं की प्रतिमा भी उपयोगी है । वर्तमानकालीन गुरु तो उपस्थित ही है । धर्माराधना के लिए धर्म की साधन-सामग्रियाँ आवश्यक हैं । 1 जैसे क्षुधा लगती है उसके लिए अनाज तरकारियाँ आदि सारी खाद्य सामग्रियाँ आवश्यक हैं और उनको बनाने के लिए - रसोईघर के बर्तनादि तथा अग्नि चूल्हा तंवादि सब अनिवार्य रूप से आलंबन है । कोइ कहे- जी नहीं, हम तो बिना अग्नि के रसोई बना लेंगे। तो यह भी कहना असंभवसी बात है । यह सिर्फ शब्दों तक ही सीमित रहता है । व्यावहारिकता उसमें नहीं रहती है । ठीक उसी तरह देव - गुरु-धर्म की उपासना के लिए मंदिर - मूर्ति-उपाश्रयादि आलंबनों की अनिवार्यता इतनी ही जरूरी है । उनके आलंबन के माध्यम से व्यक्ती उस प्रकार के भाव बना सकता है और बढा सकता है जिससे वह मिथ्यात्व को समाप्त करके सम्यक्त्व प्राप्त कर सकता है । सम्यग् श्रद्धा की प्राप्ति इन ऊँचे आलंबनों से हो सकती हो तो इसमें गलत क्या है ? जो भी कोई आलंबन आत्मा के लिए उपकारी सिद्ध हो, आत्मा पर लगे हुए कर्मों का क्षय करने के लिए जो भी आलंबन - प्राप्त हो वे सब हितकारी - उपकारी ही हैं । इसी तरह आत्मा के किसी भी प्रकार गुणको विकसा में जो सहायक हो, गुणों की प्राप्ति कराने में जो उपयोगी हो, वे बहुत ज्यादा हितकारी हैं । उनकी आवश्यकता कदम-कदम पर ज्यादा है । अतः आराधनार्थ उनका उपयोग करना ही चाहिए। मंदिर - मूर्ति - उपाश्रयादि दर्शन - वंदन - पूजनादि आराधनार्थ अच्छे आलंबन हैं । ४२२ आध्यात्मिक विकास यात्रा

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