Book Title: Aadhyatmik Vikas Yatra Part 01
Author(s): Arunvijay
Publisher: Vasupujyaswami Jain SMP Sangh

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Page 475
________________ योगदृष्टि योगदृष्टि संपूर्णरूप से ओघदृष्टि से विपरीत है । ठीक ओघदृष्टि के भावों-विचारों से योगदृष्टि के विचार-भाव सर्वथा विपरीत ही हैं। पूर्व–पश्चिम की तरह हैं। ओघदृष्टिवाले जीव में जो भवाभिनंदिता दुन्यवी सुख-भोगों की लालसा का लक्ष्य था वह योगदृष्टि में छूट जाता है। सर्वथा बदल जाता है .और धर्माराधना का हेतु आत्मशुद्धि-कर्मक्षयादि का बन जाता है । अब उसे कोई पूछे भी सही कि ये जीव ! क्यों यह सामायिक-पूजापाठ-आयंबिल-उपवासादि तप आदि धर्माराधना करता है? तो वह जीव स्पष्ट उत्तर देगा कि- आत्मकल्याण के लिए धर्म करता हूँ। आत्मोद्धारकारक यह धर्मक्रिया है । अतः यह करनी ही चाहिए । तो ही आत्मा का हित-कल्याण हो सकेगा। __ योग दृष्टि समुच्चय योगविंशिका, योगशास्त्र आदि ग्रन्थों में ८ दृष्टियों का अधिकार आता है। इन ८ दृष्टियों का सुंदर अद्भुत वर्णन किया गया है । इससे स्पष्ट ख्याल आता है कि जीवों की धर्माराधना कैसी होनी चाहिए? किस प्रकार के भावों से भरी हुई होनी चाहिए? इसके लिए योगविषयक ग्रन्थों का विशेष अभ्यास करना चाहिए। योगदृष्टिसमुच्चय ग्रन्थ में पू. हरिभद्रसूरी महाराज ८ दृष्टियों के बारे में लिख रहे हैं कि मित्रा तारा बला दीप्रा, स्थिरा कान्ता प्रभा परा। नामानि योगदृष्टीनां लक्षणं च निबोधत ॥ १३॥ १) मित्रा दृष्टि, २) तारा दृष्टि, ३) बला दृष्टि, ४) दीपा दृष्टि, ५) स्थिरा दृष्टि, ६) कान्ता दृष्टि, ७) प्रभा दृष्टि, और ८) परा दृष्टि इस प्रकार ८ योग दृष्टियाँ बताई गई हैं । ये आठ दृष्टियों के नाम दर्शाए गए हैं । दृष्टि शब्द से तात्पर्य यहाँ पर है ज्ञान–प्रकाश, या बोध । कितने अंश में किस जीवं की कितनी दृष्टि खुली है ? उसे कितना बोध हुआ है ? कैसा हुआ है यह प्रमाण दिखाने के लिए योग विषयक ग्रन्थों ने ऐसी ८ दृष्टियों में जगत् के समस्त जीवों का समावेश किया है। ये मित्रा–तारादि आठों दृष्टियाँ उत्तरोत्तर ऊपर चढते हुए क्रम में हैं । प्रत्येक दृष्टि में अन्तर या भेद एक मात्र उनके ज्ञान के प्रकाश के प्रमाण से होता है । प्रकाश पदार्थ हमेशा ज्ञान में सहायकता के कारण ज्ञान की तुलना में उपमा प्राप्त करता है । यद्यपि हम अपनी दृष्टि से ही देखते हैं, आँखों से ही दिखाई देता है, देखते हैं। लेकिन क्या प्रकाश की सहायता के बिना भी देख पाना संभव है? कभी नहीं । जैसे ही अन्धेरा हो गया वैसे ही देखना सर्वथा बंध हो जाता है । प्रकाश की सहायता के आधार पर हम देख सकते हैं । अतः यह सहायक माध्यम है । वैसे देखने की शक्ती तो आत्मा की ४१४ आध्यात्मिक विकास यात्रा

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