Book Title: Aadhyatmik Vikas Yatra Part 01
Author(s): Arunvijay
Publisher: Vasupujyaswami Jain SMP Sangh

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Page 473
________________ साधक को पहले क्या करना चाहिए? क्या पहले हमें आचरणात्मक धर्म करना चाहिए? आचरना चाहिए? या फिर पहले धर्म के प्रति अभाव पैदा करानेवाले मिथ्यात्व को छोडना चाहिए? एक तरफ मिथ्यात्व की तीव्रता के कारण धर्मश्रद्धा, गुरुश्रद्धादि किसी भी प्रकार की श्रद्धा ही नहीं है और यदि उसे धर्म का क्रियात्मक आचरण कराया जा रहा है तो वह कितना लाभदायी सिद्ध होगा? यह तो ऐसी बात हुई— पहले से ही पहाडी पथरीली भूमि है और उसमें हम बीज बो रहे हैं, सोचिए, पत्थरों की शिलाओं पर जहाँ धरातल ही योग्य-उचित नहीं है वहाँ कैसे खेती होगी? बीज अंकुरित कैसे होगा? ठीक वैसे ही मिथ्यात्व के कारण जिस जीवात्मा का धरातल भूमिका अभी धर्मसन्मुख ही नहीं बनी है उसको धर्माचरण कराने से भी कितना लाभ होगा? हाँ, मंद मिथ्यात्ववाली व्यक्ती, या श्रद्धा के किनारे खडी हुई व्यक्ती, यथाशीघ्र लौकिक व्यवहार से तथाप्रकार के धर्म का आचरण कर भी लेगी, लेकिन श्रद्धा के भावपूर्वक की वह साधना नहीं होगी। और वैसी न होने पर उसे लाभ कितना मिलेगा? अतः आज आप क्या कर रहे हैं ? अट्ठाई या मासक्षमण यह कम महत्व का है लेकिन सर्वप्रथम अपनी अश्रद्धा के भाव को-मिथ्यात्व को तिलांजली दीजिए। दूर करिए । भरसक पुरुषार्थ करके भी मिथ्यात्व की धारणा मिटाइए। श्रद्धालु बनिए... फिर आगे बढिए । आप स्वयं इस बात का अनुभव करेंगे कि... पहले मैं मिथ्यात्व की उपस्थिति में जो धर्म करता था और श्रद्धा के भाव में जो धर्म कर रहा हूँ इन दोनों में आसमान जमीन का अन्तर है । ___ मन्द मिथ्यात्व के घर में रहकर श्रद्धा न होते हुए ज्यादा की जाती हुई धर्माराधना भी कितना लाभ देगी? और धर्मश्रद्धा जो पानी पर घी तेल की तरह तैर रही है उस श्रद्धा के भावपूर्वक यदि धर्माराधना थोडी भी की जाय तो कितना लाभ होता है ? कितना आनन्द आता है ? आत्मा में यह जो आनन्द आता है यही सूचकांक है कि आपमें श्रद्धा का भाव तैर रहा है । अतः सर्वप्रथम प्रबल पुरुषार्थ करिए मिथ्यात्व को-अश्रद्धा को कम करने का, घटाने का, और सर्वथा मिथ्यावृत्ति बदलने का । सच्ची सम्यग् श्रद्धा के सद्भाव जगाने का प्रयत्न करिए। इसके लिए श्रद्धालुओं सम्यक्त्वियों के साथ, उनके बीच रहिए । सत्संग करिए तो भी ऐसे शुद्ध श्रद्धासंपन्न सम्यक्त्वियों से करिए जिनकी प्रगट श्रद्धा आपको प्रभावित करें। इससे धर्माराधना करने की आपकी भूमिका धरातल बन जाएगा। फिर आप थोडा भी करेंगे तो ज्यादा लाभ होगा। ४१२ आध्यात्मिक विकास यात्रा

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