Book Title: Aadhyatmik Vikas Yatra Part 01
Author(s): Arunvijay
Publisher: Vasupujyaswami Jain SMP Sangh

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Page 437
________________ बताए गए हैं। अतः १४ प्रकार के भगवान हो सकते हैं। परंतु अरिहंत तो मात्र वीतरागी-सर्वज्ञ ही होते हैं । ७) जो हीरा होता है, वह जरूर रंगीन पत्थर कहलाएगा, क्योंकि वह पत्थर की जाति के हैं और रंगबिरंगी हैं, परन्तु हर रंगीन पत्थर हीरे की जाती का नहीं होता है । अतः वह हीरा नहीं कहलाता है । रंगीनता का सादृश्य होते हुए भी जाति रूप से हीरे और पत्थर का भेद रहता है। इस प्रकार के तर्क–युक्त पूर्वक विचार करना अनभिग्रहिक मिथ्यात्वी के लिए बड़ा मुश्किल है । अतः वह बौद्धिक व्यायाम नहीं करना चाहता है । इसलिए सब भगवान एक है । सब धर्म एक है । इत्यादि मानना उसके लिए बड़ा आसान और सरल लगता है, परन्तु अच्छी तरह से विचार करें तो ऐसा लगेगा कि हम ठगे जा रहे हैं। पीला देखकर यदि सोना खरीद लिया तो नुकसान हमारा ही होगा। इसलिए सोने की भी परीक्षा करके ही खरीदना चाहिए। सोने की परीक्षा भी आसान नहीं है । कष-छेद-भेद और ताप इन चार प्रकार से परीक्षा की जाती है । उसी तरह संसार के व्यवहार में हर वस्तु की परीक्षा करके ही उन्हें स्वीकार करें। तार्किकशिरोमणि पूज्य हरिभद्रसूरी महाराज कहते हैं कि धर्मो धर्मार्थिभिः सदा ज्ञेया परिक्षितैः । धर्मार्थी-धर्म की इच्छावाली आत्मा को सदा धर्म की परीक्षा करके ही उसे स्वीकारना चाहिए । शायद आप सोचेंगे कि हमें धर्म की परीक्षा करने का क्या अधिकार है ? हम किस बुद्धि से भगवान की परीक्षा करें । हमारे पास कहाँ इतना ज्ञान है कि हम तत्त्वों की परीक्षा कर सकें? बात सही है । सोचिए, हमने सोने की परीक्षा कैसे की? कसोटीपर कसके ही परीक्षा की कि यह सोना है। वैसे ही धर्मशास्त्रों ने हमें एक कसौटीरूप सिद्धान्त बताए हैं जिससे हम भगवान और धर्म की भी परीक्षा कर सकते हैं । उदाहरण के लिए नमो अरिहन्ताणं पद दिया है । अरिहंत परमात्मा को नमस्कार किया है। भगवान को अरिहंत. शब्द से संबोधित किया है, अरि = आंतर शत्रु । काम, क्रोध, मान, माया, लोभ, राग, द्वेष आदि आत्मा के आभ्यन्तर शत्रु हैं । हंत अर्थात् हनन = नाश करना । अरिहंत अर्थात् राग-द्वेषादि आंतर शत्रुओं के विजेता, ऐसे अरिहंत भगवान को नमस्कार किया गया है । नमुत्थुणं के पाठ में नमुत्थुणं अरिहंताणं भगवन्ताणं ये शब्द पहली संपदा में दिये गये हैं । अर्थ है- नमस्कार हो अरिहन्त भगवन्तों को । यहाँ प्रश्न उठता है कि जो–जो अरिहंत होते हैं वे भगवान होते हैं ? या जो जो भगवान होते हैं वे अरिहन्त होते हैं ? इस तर्क का उत्तर यदि हम दें कि जो जो भगवान होते हैं वे अरिहन्त होते हैं तो सोचिए ! यह कहाँ तक सही लगेगा? क्योंकि संसार में भगवान कई प्रकार के होते हैं, तथा भगवान शब्द के भी कई अर्थ होते हैं । भोगलीला करनेवाले को भी लोग ३७६ आध्यात्मिक विकास यात्रा

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