Book Title: Aadhyatmik Vikas Yatra Part 01
Author(s): Arunvijay
Publisher: Vasupujyaswami Jain SMP Sangh

Previous | Next

Page 438
________________ भगवान कहते हैं । कोई अपने आप ही भगवान बन बैठते हैं । कोई 'संभोग से समाधि' ऐसे पापाचार, दुराचार एवं दंभ चलानेवाले भी भगवान कहलाते हैं । कोई चमत्कारों को दिखाकर भी भगवान बनने का स्वांग करते हैं । इस तरह ऐसे कर्मयुक्त रागी -द्वेषी कई भगवान बन बैठते हैं । वे अरिहंत वीतराग कैसे हो सकते हैं ? क्योंकि अरिहंत तो राग-द्वेषादि सर्व आभ्यन्तर- -कर्मशत्रुरहित होते हैं । इसलिए जो-जो भगवान होते हैं वे अरिहंत हैं, ऐसा मानना, या कहना सही नहीं है, तर्क - युक्तिशून्य है । इसलिए “नमुत्थुणं अरिहंताणं भगवान्ताणं” इस पाठ की रचना में शब्दों को जो क्रम दिया है, वह इस तर्क -युक्ति का प्रमाण सिद्ध करता है । अतः जो-जो अरिहंत होते हैं वे भगवान अवश्य कहलाते हैं । यही इस परीक्षा (या कसौटी पर खरा उतरता है । इस दृष्टिकोण से सोचने पर भी सब भगवान एक है यह बात रत्तीभर भी सही नहीं लगती है । एक सज्जन ने प्रश्न किया कि भक्तामरस्तोत्र आदि कई स्तुतियों में कई भगवानों के नाम एक साथ लेकर नमस्कार किया गया है तो उसमें क्या समझना चाहिए ? उदाहरण के लिए भवबीजांकुर जनना रागादयो क्षयमुपागता यस्य । ब्रह्मा वा विष्णुर्वा हरो जिनो वा नमस्तस्मै ॥ बुद्धस्त्वमेव विबुधार्चितबुद्धिबोधात् त्वं शंकरोऽसि भुवनत्रय - शंकरत्वात् । धातासि धीर ! शिवमार्गविधेर्विधानात् व्यक्तं त्वमेव भगवन् ! पुरुषोत्तमोऽसि ॥ इन स्तुतियों में ब्रह्मा, विष्णु, हर - महादेव, तथा जिन भगवान आदि सभी को एक साथ नमस्कार किया गया है। वैसे ही भक्तामरस्तोत्र की इस स्तुति में भी बुद्ध, शंकर, धाता - विधाता, पुरुषोत्तम आदि भगवान के नामों का एकसाथ उल्लेख करके नमस्कार किया गया है । “सब भगवान एक है” ऐसा वे मानते या स्वीकारते होंगे। तभी तो उन्होंने ऐसी स्तुतियाँ की होंगी ? महाशयजी ! आपका कहना ठीक है । परन्तु इसका रहस्य समझने पर सम्भव है कि भ्रान्ति दूर हो जाय । आपने उपरोक्त स्तुति में सिर्फ भगवान के प्रचलित नामों पर ही ध्यान दिया है, परन्तु समूचे अर्थ पर ध्यान नहीं दिया है ऐसा लगता है । देखिए, सभी को "मिथ्यात्व " • प्रथम गुणस्थान - ३७७

Loading...

Page Navigation
1 ... 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496