Book Title: Aadhyatmik Vikas Yatra Part 01
Author(s): Arunvijay
Publisher: Vasupujyaswami Jain SMP Sangh

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Page 417
________________ को यथार्थ - वास्तविक सत्य स्वरूप में देखेगा और ठीक वैसा ही सत्यस्वरूप जगत के सामने प्रस्तुत करेगा। क्योंकि सत्याग्रही - सत्यान्वेषी - सत्यशोधक सम्यक्दृष्टि जीव था । अतः इसी संकल्प से उस जीव विशेष ने सब छानबीन करके यथार्थ सत्य ही प्राप्त किया, और ठीक इससे विपरीत - मिथ्यादृष्टि जीव सत्य को न पकडते हुए भी विपरीत -असत्य स्वरूप भी ग्रहण कर अपनी मिथ्यादृष्टि के आधार पर वैसा वर्णन करके दूसरों को कह देगा । समझा देगा । अतः यहाँ सृष्टि की अपेक्षा भी कहनेवाले—देखनेवाले की दृष्टि पर सबसे बडा आधार है । यह समस्त ब्रह्माण्ड, यह सारा जगत् अनादि - अनन्तकाल से, जैसा है वैसा ही है. पर इसे देखनेवाले सभी धर्मों के सभी भिन्न-भिन्न दृष्टा व्यक्तियों ने अपनी-अपनी दृष्टि से देखकर वैसा ही लिखकर शास्त्र बना दिया और आज उसीकी परंपरा-अध्ययन–अध्यापन करने के रूप में चल रही है। परिणाम स्वरूप एक मिथ्यात्वी की मिथ्या मान्यता, मिथ्या विपरीत- विचारणा मिथ्यादृष्टि के आधार पर उस जीव को जीव-जगत के बारे में जैसा दिखाई दिया वैसा उसमें संसार के सामने रख दिया । जैसा है वैसा कहना, और जैसा मुझे दिखाई देता है वैसा कहना इन दोनों में कौन से विचार सही हैं ? Might is Right? or Right is Might? बस, जो मैंने कहा वही सत्य है या जो सत्य है वहीं मैंने कहा है ? संसार मे दोनों किसम के जीव हैं । मेरा ही सत्य है ! बस जो कुछ मैंने कहा वही सत्य है - ऐसी विचारधारा माननेवाले जीवों की संख्या सदा ही ज्यादा रही है। और रहेगी। क्योंकि ऐसे जीव राग-द्वेषादि कषायग्रस्त रहते हैं । विशेष रूप से अहंकार घमण्डवृत्ति के अधीन रहते हैं । अपना मोह - - ममत्व काफी ज्यादा होने के कारण वैसा हठाग्रह–कदाग्रह की वृत्ति के कारण वैसे कहता है । यह जीव अहंकारादि भाववाला कषायग्रस्त है । अतः ऐसा कदाग्रह रखता है कि जो कुछ भी मैंने कह दिया है वही सत्य है । मेरे मुँह से जो भी निकल गया वही सत्य है । ऐसी उसकी अपनी वृत्ति रहती है । ऐसा जीव मिथ्यात्वी कहलाता है । - 1 दूसरा जीव उससे भिन्न अलग ही किसम का है । इसमें कषायों की न्यूनता रहने से कदाग्रह हठाग्रह जिद्द नहीं रहती है। यह खुल्ले दिमागवाला रहता है । सत्य के नजदीक रहता है । अतः साफ कहता है कि— Whatever is Right is Might जो जो भी सत्य है अच्छा है वह मेरा है । सत्य का पक्षपाती है । सत्य को स्वीकारनेवाला है । इसमें सत्य के लिए अपने दरवाजे खुल्ले रखे हैं । सत्य का लक्ष है ऐसा जीव सम्यक्त्वी है । इसकी अपेक्षा भी सम्यक्त्वी का ऐसा लक्ष्य रहता है ऐसा कहना ज्यादा उचित लगता है । संसार ३५६ आध्यात्मिक विकास यात्रा

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