Book Title: Aadhyatmik Vikas Yatra Part 01
Author(s): Arunvijay
Publisher: Vasupujyaswami Jain SMP Sangh

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Page 429
________________ बढानेवाला बनता है । लेकिन ... दूध में यदि नींबू का रस डाला जाय तो वह दूध को विकृत कर देगा। फाड देगा। फटा दूध पीने को मन भी नहीं करेगा। क्योंकि अब उसमें विकृति आ गई है। अतः दूध के प्राकृतिक गुणधर्मों के नष्ट हो जाने से अब विपरीतता आ गई है। वह विपरीत विकृति नुकसान करती है। ठीक इसी तरह मिथ्यात्व सत्य से उल्टा–विपरीत है । सम्यक्त्वी का जो ज्ञान सर्वथा सत्यस्वरूप प्रत्येक विषय में रहता है। लेकिन मिथ्यात्वी का मिथ्याज्ञान प्रत्येक बात में उल्टा बनता है। मिथ्यात्व ज्यादा नुकसानकारक है या अज्ञान? मिथ्यात्व और अज्ञान दोनों का ख्याल आ जाने के पश्चात् अब यह ढूँढ लेना चाहिए कि दोनों में से ज्यादा नुकसानकारक कौन है ? १) अज्ञान का अर्थ ज्ञान का अभाव लिया जाय...(यद्यपि सर्वथा ज्ञान का अभाव चेतनात्मा में तो हो ही नहीं सकता है । इसका वर्णन ऊपर कर चुके हैं।) हमारे में किसी एक विषय के ज्ञान का अभाव हो सकता है। किसी में शरीर के अन्दर के अवयवों के कार्य के बारे में सर्वथा जानकारी नहीं होती है, ओपरेशन के विषय के ज्ञान का सर्वथा अभाव होता है । वैसे ज्ञान के अभाव के कारण क्या ज्यादा नुकसान होगा? यदि हमारे में सूर्य-चन्द्र संबंधी ज्ञान का सर्वथा अभाव हो तो क्या ज्यादा नुकसान होगा? जी नहीं? यदि किसी विषय के ज्ञान का अभाव हो तो वह ज्ञान उस व्यक्ती को प्राप्त कराया जा सकता है । आसान है। २) दूसरे अर्थ में अज्ञान अर्थात् अल्पज्ञान.... यदि किसी व्यक्ती को किसी विषय का ज्ञान बहुत अल्प = कम हो तो कितना नुकसान होगा? मानों कि हमें राज्यतन्त्र का सर्वथा अल्पज्ञान हो, फिर भी हमारा जीवन चलता रहता है। ज्यादा नुकसान नहीं है । ये दोनों अभाव एवं अल्पार्थक, ज्ञान प्राप्त कराने से समझ सकते हैं, आसानी से । ३) तीसरा व्यक्ती मिथ्यात्वी है । मिथ्या अर्थात् सत्य से-सच्चे अर्थ से सर्वथा विपरीत जानकारीवाला हो। ऐसे विपरीत जानकारीवाले के पास आंशिक सत्य की जानकारी होती है, वह सच्चा मार्ग भी थोडे अर्थ में जानता है लेकिन सर्वथा जानबूझकर विपरीत-उल्टा चल रहा है । दूध में शक्कर डालने की अपेक्षा वह नींबू का रस डालकर दूध को फाडकर-विकृत करके पी रहा है । वैसा व्यक्ती कदाग्रह-दुराग्रह पूर्वक उल्टा ही चल रहा है । ऐसा मिथ्यात्वी व्यक्ती होता है। ३६८ आध्यात्मिक विकास यात्रा

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