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के अध्ययन में सम्पूर्ण निरुक्त पढ़ने का अवसर प्राप्त हुआ। एम.ए. (संस्कृत) के पाठ्यक्रमों में भी निरुक्त के कंछ अंश निर्धारित है। परिणामतः निरुक्त के अध्ययन का विशेष योग प्राप्त होने लगा। निर्वचन के माध्यम से वैदिक एवं लौकिक शब्दों के रहस्य को समझने में बड़ी सहायता मिली। निर्वचन सम्बन्धी जिज्ञासा का ही परिणाम है कि मैंने पी-एच.डी. शोधोपाधि के लिए भी निरुक्त को ही अपना विषय बनाया। उसमें निरुक्त का भाषा वैज्ञानिक एवं आलोचनात्मक पक्ष मीमांसित हुआ जिसमें यास्क के कुछ ही निर्वचनों की समीक्षा की गयी। सभी निर्वचनों का मूल्यांकन वहां संभव भी नहीं था।
निर्वचन शास्त्र की सुदीर्घपरम्परा में यास्कू का स्थान सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है। इस परम्परा में यास्त के सिद्धान्तों एवं निर्वचनों का समीक्षण पूर्ण रूप में प्राप्त नहीं था। भाषा विज्ञान के परिप्रेक्ष्य में भी इनकी समीक्षा अपेक्षित थी। फलतः डी.लिट. शोधोपाधि हेतु मैंने निर्वचन को ही अपना विषय बनाया। विविध दृष्टियों से निर्वचनों का एकत्र परिशीलन एवं यास्क के शब्ददर्शन की पृष्ठभूमि को समझने के लिए यह पुस्तक प्रस्तुत है।
इस पुस्तक के प्रणयन में जिन विद्वानों एवं उनकी कृतियों का सहयोग प्रत्यक्ष या परोक्षरूप में प्राप्त हआ है उनके प्रति मैं आभार व्यक्त करता है। रांची विश्वविद्यालय के पूर्वस्नातकोत्तर संस्कृत विभागाध्यक्ष डॉ. अयोध्यो प्रसाद सिंह का मार्गदर्शन सर्वदा प्राप्त होता रहा है, मैं उनका विशेष ऋणी हूं। बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के स्नातकोत्तर विभागीय आचार्य डॉ. वीरेन्द्र कुमार वर्मी, गवर्नमेंट संस्कृत कालेज, कलकुत्ता के भाषा विज्ञान विभागाध्यक्ष डॉ. एस.डी. शास्त्री के भी हम आभारी हैं जिनकी संस्तुतियां यथासमय उत्प्रेरित करती रहती हैं। रांची विश्वविद्यालय के स्नातकोत्तर संस्कृत विभागाध्यक्ष डॉ. जयनारायण पाण्डेय, विनोवा भावे विश्वविद्यालय के स्नातकोत्तर संस्कृत विभागाध्यक्ष डॉ. एच.के. ओझा, उपाचार्य डॉ. रामलक्ष्मण मिश्र, रांची कालेज, रांची के संस्कृत विभागाध्यक्ष डॉ.चन्द्रकान्त शुक्ल आदि विद्वानों की शुभकामनाओं के लिए इन सबों के प्रति धन्यवाद ज्ञापन करता हूं।
भारत के सभी विश्वविद्यालयों के स्नातकोत्तर संस्कृत पाठ्यक्रमों में निर्धारित निरुक्त के विशेष अध्ययन में छात्रों को तथा भारतीय ज्ञानविज्ञान से सम्बद्ध गवेषकों को शब्ददर्शन के ज्ञान में इससे सहयोग प्राप्त हो सकेगा। भाषा विज्ञान के बदलते परिवेश में उसके कुछ भाषा वैज्ञानिक तथ्य कालानुरूप परिवर्तन की अपेक्षा रख सकते हैं फिर भी आशा है शब्दों की अर्थविषयक जिज्ञासा की परितृप्ति शाब्दिकों को उत्प्रेरित करेगी।
नौकया त कामोऽहं विशालं शब्दसागरम् कामये शब्दवेगेषु निबबुश्वार्थवखकम्।। अपारे शब्दसंसारे शाब्दिकानां विशेषतः कामये तर्जनी धर्तुं गन्तुं तत्र मुहर्मुहः।।
रामाशीष पाण्डेय