Book Title: Vyutpatti Vigyan Aur Aacharya Yask
Author(s): Ramashish Pandey
Publisher: Prabodh Sanskrit Prakashan

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Page 9
________________ की वृत्तियां इसमें कालान्तर की है । पन्द्रहवीं शताब्दी के आचार्य महेश्वर ने भी निरुक्त की टीका लिखी जो खण्डशः प्राप्त होती है। नीलकण्ठ गार्ग्य प्रणीत निरुक्तश्लोक वार्तिक में निरुक्त के विषयों का पद्यात्मक विवेचन हुआ है जो डॉ. विनयपाल द्वारा सम्पादित है। नीलकण्ठ गार्ग्य का समय बारहवीं शताब्दी का माना जाता है। दुर्गवृत्ति के आधार पर पण्डित मुकुन्द झा वक्सी ने संस्कृत टीका लिखी जो निर्णय सागर प्रेस बम्बई से प्रकाशित है। यह टीका संस्कृत माध्यम के अध्येताओं के लिए विशेष उपादेय है। उपर्युक्त टीकाकारों के अतिरिक्त भी अनेक टीकाकारों का उल्लेख प्राप्त होता है लेकिन उनमें अधिकांश की टीकायें सम्प्रति उपलब्ध नहीं होती । पाश्चात्य विद्वानों में रॉथ ने जर्मन भाषा में निरुक्त की भूमिका लिखी एवं उसका अनुवाद प्रकाशित किया। इसकी भूमिका का अंग्रेजी अनुवाद डॉ. मैकिशन ने किया जिसका प्रकाशन १९१९ ई. में बम्बई विश्वविद्यालय से हुआ (वैदिक विब्लियोग्राफी - पृ. ६० - दाण्डेकर) पाश्चात्य विद्वानों के उपर्युक्त कार्य लगभग अठारहवीं शताब्दी में सम्पन्न हुए । बंगाल के प्रसिद्ध वैदिक विद्वान पं. सत्यव्रत सामश्रमी का निरुक्तालोचन निरुक्त के तथ्यों को प्रकाशित करने में समर्थ है। डॉ. लक्ष्मणस्वरूप ने उन्नीसवीं शताब्दी में 'एन इण्ट्रोडक्सन टू निरुक्त' लिखा। उनकी 'निघण्टु एवं निरुक्त' संस्कृत की महती सेवा है। जर्मन विद्वान स्कोल्ड ने भी निरुक्त पर अपना शोध प्रबन्ध लिखा जिसका प्रकाशन १९२६ ई. में हुआ । प्रो. राजवाड़े ने १९३५ ई. में सम्पूर्ण निरुक्त का मराठी अनुवाद करवाया। १९४० ई. में पुनः निरुक्त का प्रथमभाग भी प्रकाशित हुआ । अनुसन्धानात्मक दृष्टि से इनका विशेष महत्त्व है। डा. सिद्धेश्वर वर्मा ने 'दी इटीमोलाजीज आफ यास्क' लिखकर भाषाविज्ञान की दृष्टि से निरुक्त का महत्त्वपूर्ण कार्य किया । यास्क के निर्वचनों का भाषा विज्ञान की कसौटी पर कसने का प्रयास निर्वचन शास्त्र की महती सेवा है। निरुक्त पर भाषा विज्ञान परक कार्य डॉ. विष्णुपद भट्टाचार्य ने भी किया जिनकी पुस्तक 'यास्कस् निरुक्त एण्ड दी साइन्स ऑफ इटीमोलाजीज' प्रसिद्ध है। पं. शिवनारायण शास्त्री ने निरुक्त मीमांसा लिखकर निरुक्त अध्ययन में अपना महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। हिन्दी टीकाकारों में पं. सीताराम शास्त्री, मिहिरचन्द्र पुष्करणा, पं. धज्जुराम शास्त्री, डॉ. उमाशंकर शर्मा 'ऋषि' आदि उल्लेखनीय हैं। डॉ. 'ऋषि' की भूमिका निरुक्त अध्ययन की दिशा में महत्त्वपूर्ण उपलब्धि है। निर्वचनों के प्रति मेरी जिज्ञासा आरंभ से ही रही है। व्याकरण शास्त्र के अध्ययन से शब्दों के व्युत्पत्तिविषक ज्ञान की अभिवृद्धि हुई । वेदाचार्य विषयों

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