Book Title: Vakpatiraj ki Lokanubhuti Author(s): Kamalchand Sogani Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur View full book textPage 9
________________ न करने के कारण गुणों से परिचय प्राप्त करता है (6)। जो गुणवान् इस जगत में अपने गुणों का प्रदर्शन नहीं करता है वह ही सुखपूर्वक जी सकता है (30)। ऐसा प्रतीत होता है कि वाक्पतिराज को लोक में गुणी व्यक्ति प्रसफल होते हुए दिखाई दिए। प्रतः उन्होंने कहा कि दोषों के जो गुण हैं, वे यदि गुणों में भाजाएँ, तो ही गुणों को नमस्कार करना उचित है, अर्थात् जैसे दोषों के द्वारा सांसारिक जीवन में सफलता मिल जाती है, वह यदि गुणों से मिल जाय तो ही गुणों को नमस्कार करना उचित है (37)। किन्तु वाकपतिराज इस बात को भी स्वीकर करते हैं कि कभी-कभी किन्हीं गणी मनुष्यों का उत्कर्ष दूसरे गुरिणयों द्वारा आगे बढ़ने के कारण नहीं होता है। फिर भी, उनमें गुण हैं इस बात को नहीं भूला जा सकता है (82)। व्यक्ति के जीवन में गुणों के सिद्ध होने पर ही उसकी मति दोषों की तरफ नहीं झुकती है (38) । यह ध्यान रहे कि पर-गुणों की लघुता प्रदर्शन के द्वारा स्व में गुगा उदित नहीं होते हैं (39) । वाक्पतिराज का यह दृढ़ विश्वास है कि गुणों से उत्पन्न होने वाली महिमा को गुणों के झूठे प्रदर्शन के द्वारा गुण-रहित व्यक्ति प्राप्त नहीं कर सकता है। सच तो यह है कि महा गुणी व्यक्ति भी अपने गुणों के प्रदर्शन के द्वारा तुच्छता अनुभव करता है (40) । यह विश्वास किया जाना चाहिए कि महिमा. में और गुणों के फल में घनिष्ट सम्बन्ध है । किन्तु दुष्ट पुरुष महिमा को प्रगुरणों से जोड़ता है, यह उसकी भूल है (41)। गुणवानों के हृदय में गुणों से उत्पन्न मद कभी प्रवेश नहीं करता है, क्या प्रदर्शित नहीं करने पर भी उनके गुण महान नहीं होते हैं (42) ? गुणों के प्रेमी वाक्पतिराज का कहना है कि गुण अवश्य ही प्रशंसित होने चाहिए। यदि ऐसा नहीं होगा तो दोष फलेंगे और धीरे-धीरे लोक भी अगुणों के आदर से गुण-शून्य हो जायगा (45)। गुणवानों की प्रशंसा के लिए मनुष्यों में उदार भाब, सरलता आदि. गुणों का होना मावश्यक है (55)। इतना होते हुए भी वाक्पतिराज यथार्थवादी दृष्टिकोण को लिए हुए कहते हैं कि कि प्रचुर विशेषताओं वाले मनुष्य बहुत ही थोड़े होते हैं, यहां तक कि एक विशेषता वाले मनुष्य भी सब जगह पर नहीं होते हैं तथा निर्दोष मनुष्य का तो मिलना भी कठिन (viii) वाकपतिराज की Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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