Book Title: Vakpatiraj ki Lokanubhuti
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
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24. दुक्खेहि दोहि सुप्रणा अहिऊरिज्जति दिमसिअंचेन। - सुपुरिस-काले अ ण जं जं जामा णीअ-काले अ॥
25. सुमईण सुचरित्राण प्र देता आलोप्रणं पसंगं च।
पहुणो जंणिप्रम-फलं तं ताण फलं ति मण्णंति ।।
26. अण्णो वि णाम विहवी सुहाई लीलासहाई रिणविसइ।
असमंजस-करणेच्चेप्र णवर णिव्वडइ पहुभावो ।।
27. अंदोलंताण खणं गरुपाण अणारे पहु-कमम्मि ।
हिप्रयं खल - बहुमाणावलोअणे णवर णिवाइ ।।
28. पत्थिव-घरेसु गुणिणो वि णाम जइ केवि सावसास व्व ।
जण - सामण्णं तं तारण किपि अण्णंचिम णिमित्त ।
10
वापतिराज को
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