Book Title: Vakpatiraj ki Lokanubhuti
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur

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Page 42
________________ 59. स्थान-स्थान पर (महापुरुषों के द्वारा) स्थापित लक्ष्मी के कारण उन (महापुरुषों) के लिए निर्धनता कैसे संभव है ? किन्तु कृपण की लक्ष्मी अकेली (है), यदि (वह) नष्ट हई (तो) (उसका) मूल ही भूला दिया गया अर्थात् भूला दिया जायगा। 60 दूसरों के विषय में दान-गुण को सराहते हए (भी) कृपण के निज त्याग में उत्साह नहीं है, और आश्चर्थ (उसके) लज्जा भी कैसे नहीं है ? 61. चूंकि (मनुष्य) (जिनके द्वारा) वास्तविक गुण प्राप्त किए गए हैं, महान् भी (लक्ष्मी को) तुच्छ (वस्तु) की तरह मानते हैं, इसलिए लक्ष्मी का गुणों से विरोध वास्तव में बिना कारण नहीं है । 62. चूकि (सत्पुरुष के द्वारा) भौं सिकुड़न (उपेक्षा) से प्राज्ञा दी गई भी लक्ष्मी सत्पुरुष को शीघ्रता से आलिंगन नहीं करती है, मैं सोचता है उस कारण से ही (लक्ष्मी) (सत्पुरुषों की अोर) वेग से दौड़ती हुई (भी) स्खलित हो जाती है। . 63. सत्पुरुष के अभाव में वह (लक्ष्मी) भी, जो) निस्संदेह पालंबन रहित (हो जाती है), बिल्कुल नाश को प्राप्त होती है। (इस तरह से) देव के कारण उससे (सत्पुरुष से) लक्ष्मी का न चाहा हुआ विरह होता है । 64. पूज्य लक्ष्मी धर्म से उत्पन्न होती है)। (उसका) सज्जन से विरोध ___ कैसे होना चाहिए ? वे लक्ष्मी के सदृश अलक्ष्मियाँ ही हैं जो दुष्टों में (स्थित हैं)। लोकानुभूति Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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