Book Title: Vakpatiraj ki Lokanubhuti
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur

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Page 75
________________ (विम्हिन) 1/2 वि ताहे (प्र) = तब इधर-सुलह [(इपर) वि(सुलह) 1/1 वि] पि (प्र) = भी नाहे (प्र)- जब गरमाण (गरुम) 4/2 वि ण (म)- नहीं किंपि (प्र) = थोड़ी सी संपडइ (संपड) व 3/1 प्रक 57. दाति (दाव) व 3/2 सक सज्जणाणं (सज्जण) 6/2 इच्छा-गरुनं [(इच्छा)-(गरुन) 2/1 वि] परिग्गहं (परिग्गह) 2/1 गरुमा (गरुप) 1/2 वि मण-विणिवेस -दिट्ठ [(मप्रण)-(विणिवेस)(दिट्ठ) भूक 1/1 अनि] महा-मणोणं [(महा)-(मणि) 6/2] व (प्र) = जैसे पडिबिंब (पडिबिंब) 1/1 * कभी कभी षष्ठी विभक्ति का प्रयोग द्वितीया विभक्ति के स्थान पर पाया जाता है (हेम प्राकृत व्याकरण : 3-134) 58. साहीण-सज्जणा [(साहीण) वि-(सज्जण) 1/2] वि (अ) ही हु (म)= आश्चर्य णीन-पसंगे [(णीय) वि-(पसंग) 7/1] रमंति (रम) व 3/2 प्रक काउरिसा (काउरिस) 1/2 सा (ता) 1/1 स इर (अ)- निश्चय ही लीला (लीला) 1/1 जं (प्र) = कि काम-धारणं (काम)-(धारण) 1/1] सुलह-रप्रणाण [(सुलह) वि(रप्रण) 6/2] * कभी कभी षष्ठी विभक्ति का प्रयोग सप्तमी के स्थान पर होता है (हेम प्राकृत व्याकरण : 3-134) थाम-स्थाम-णिवेसिम-सिरीण: [थाम)-(त्थाम)-(णिवेसिप) भूकृ(सिरी) 6/2] गहाण (गरुप्र) 4/2 कह (प्र) = कैसे गु (अ)= संभावना बालिई (दालिद्द) 1/1 एक्का (एक्का) 1/1 वि उण 59. 56 बापतिरान को Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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