Book Title: Vakpatiraj ki Lokanubhuti
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur

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Page 82
________________ 79. 2/1 क दीणो ( दीण) 1 / 1 वि वि (श्र) = ही वरं (प्र) = श्रेष्ठतर एक्स (एक्क) 6/1 विण (अ ) = नहीं उण (प्र) - किन्तु स लाए (सग्नल→ सनला) 6/1 वि पुहवीए (पुहवी ) 6/1 81. अच्छउ ( श्रच्छ) विधि 3 / 1 अक ता (प्र) = तो विहलुद्धरणगारवं ] [ ( विहल) वि - (उद्धरण) - [ ( विहल ) + (उद्धरण) + (गारवं ) ( गारव) 1 / 1 ] ( अगरु ) 7 / 2 वि श्रप्पारणस्स कत्थ ( अ ) = कैसे ( अ ) = इसलिए प्रगरु सु* (अप्पारण ) 6 / 1 स्वार्थिक 'प्र' प्रत्यय वि (श्र) = भी पियं ( पिय) 2 / 1 इअरा ( इअर ) 1/2 वि काउं ( काउं) हे प्रनि ग ( प्र ) = नहीं पारंति (पार) व 3 /2 क * कभी कभी तृतीया विभक्ति के स्थान पर सप्तमी विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है | ( हेम प्राकृतं व्याकरण : 3-135 ) 80. भूरि-गुणा [ ( भूरि ) - ( गुण) 1 / 2 ] विरल (विरल) 1 / 2 वि श्रागे संयुक्त अक्षर (चित्र) के आने से दीर्घ स्वर हृस्व स्वर हुआ है । च्चि (प्र) = वास्तव में एक्क गुणो [ ( एक्क) वि- (गुरण) 1 / 1] वि (प्र) = भी हु (प्र) = आश्चर्य जणो (जरा) 1 / 1 ण ( अ ) = नहीं सव्वत्थ (श्र) = सब जगह पर गिद्दोसाण ( णिद्दोस ) (अ) = भी भद्द (भद्द) 1 / 1 पसंसिमो ( पसंस ) व . विरल - दोसं | ( विरल) वि - ( दोस) 2 / 1] पि (अ) - भी 6 / 2 वि वि 2 / 2 सक तं थोवाग-दोस च्चि [ ( थोव) + ( प्राग ) + (दोस ) + (च्चित्र ) ] [ ( थोव) वि - (प्राग) वि - ( दोस) 2 5 / 1 आगे संयुक्त प्रक्षर (च्चित्र) के आने से दीर्घ स्वर ह्रस्व स्वर हुआ है ] च्चित्र ( अ ) = ही लोकानुभूति Jain Education International For Personal & Private Use Only 63 www.jainelibrary.org

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