Book Title: Vakpatiraj ki Lokanubhuti
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur

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Page 87
________________ 93. गेव्हउ (गेव्ह ) विधि 3 / 1 सक विहवं (विहव) 2 / 1 अवउ (वणी) विधि 3 / 1सक नाम ( अ ) = यद्यपि लीलावहे ( लीलावह) 2 / 2 वि वय-विलासे [ ( वय ) - (विलास ) 2/2] दूमेइ* (दूम) व 3 / 1 सक कह ( श्र) = कैसे णु ( प्र ) = तो भी देव्वो ( देव्व) 1 / 1 गुण- परिउट्ठाई [ ( गुण) - (परिउट्ठ) 2 / 2 वि] हिश्रश्राई (हि) 2/2 * कभी कभी वर्तमान काल का प्रयोग विधि श्रर्थ में किया जाता है | 94. 95. ( उव्विश्रंताण ) ] खणमेतं ( क्रिविप्र ) = क्षण भर के लिए उवितरण * (उग्विन) वकृ 6/2 मिश्र-विवेश - दुविद्या [ ( णिश्रम ) वि - ( विवेश ) - ( ठुव) भूकृ 1 / 2] गरुप्राण* (गरुप्र ) 6 /2 गुणा (गुण) 1/2 पहट्ट ति ( पट्ट) व 3 / 2 प्रक * कभी कभी तृतीया विभक्ति के स्थान पर षष्ठी विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है । (हेम प्राकृत व्याकरण : 3-134) 68 = श्रघडि - परावलम | [ (प्रघडि ) + (पर) + (अवलंबा ) ] [ (प्रघडि ) भूकृ - ( पर ) वि - ( अवलंब) 1 / 2] जह ( अ ) - जैसे मह (प्र) जैसे गरुअत्तणेण (गरुग्रत्तरण ) 3 / 1 विहडंति तह ( अ ) = वैसे तह ( अ ) = वैसे गरुप्रारण हवंति (हव) व 3 / 2 अक बद्ध-मूलाम्रो ( बद्धमूल - 1/2 वि कित्ती ( कित्ति ) 1 / 2 * कभी कभी तृतीया विभक्ति के स्थान पर षष्ठी विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है | ( हेम प्राकृत व्याकरण: 3-134 ) Jain Education International (विहड ) व For Personal & Private Use Only (गरुप्र ) → 3 / 2 प्रक 6 / 2 वि असलाहणे * (प्र- सलाह ) 7 / 1 खलु ( प्र ) - सचमुच चिच (प्र) - ही अलि-पसंसाए [ (अलिन) वि- (पसंसा) 3 / 2] बुज्जणो वाक्पतिराज की बद्धमूला ) www.jainelibrary.org

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