Book Title: Vakpatiraj ki Lokanubhuti
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur

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Page 78
________________ 66. ( आधारघर ) 6 / 2 •वि चित्र ( अ ) - ही ताम्रो सवि ण ( अ ) = नहीं उणो ( अ ) = निश्चय ही प्र इराण ( इअर ) 6 / 2 वि ues (वणी) व तथा गुणे ( गुण) सक पचासं (पचास ) X 67. अण्णोष्णं (अ) 3 / 1 सक देइ (दा) व 3 / 1 2 / 2 दोसे ( दोस) 2 / 2 णूमेह 2 / 1 दीसइ ( दीसइ) व कर्म Jain Education International ( ता ) 1/2 ( अ ) - किन्तु सक अ ( (णूम ) 3 / 1 For Personal & Private Use Only अ ) = व एस (एत) 1 / 1 सवि विरुद्धो (विरुद्ध) 1 / 1 वि व्व ( अ ) - तुल्य को fa* (क) 1 / 1 सवि - कुछ लच्छोए ( लच्छी ) 6 / 1 विण्णासो (faumra) 1/1 प्रश्नवाचक शब्दों के साथ जुड़कर अनिश्चितता के अर्थ को बतलाता है । = 3 / 1 सक अनि = एक दूसरे के साथ लच्छिगुणाण * [ ( लच्छि ) - ( गुण) 6 / 2 ] णूण ( अ ) - पूरी संभावना है कि पिसुणा (पिसु ) 1/2 वि गुण (गुरण) 1 / 2 प्रागे संयुक्त अक्षर (च्चित्र) के आने से दीर्घ स्वर ह्रस्व स्वर हुआ है । च्चित्र (प्र) = ही ण ( प्र ) = नहीं लच्छी ( लच्छी) 1 / 1 अहिलेइ (हि-ले) व 3 / 1 सक गुणे ( गुण) 2 / 2 fच्छ ( लच्छी) 2 / 1 उणो ( अ ) = किन्तु गुणा ( गण ) 1 / 2 जेण (प्र) = क्योंकि . * जिस समुदाय में से एक को छींटा जाता है उस समुदाय में षष्ठी प्रथवा सप्तमी विभक्ति होती है । 68. दुक्खाभावो [ ( दुक्ख) + (प्रभावो)] [(दुक्ख ) - (प्रभाव) 1 / 1] न लोकानुभूति 59 www.jainelibrary.org

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