Book Title: Vakpatiraj ki Lokanubhuti
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
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जा विउला जाओ चिरं जा परिहोडज्जलानो लच्छीप्रो । आरधराणंचिन ताम्रो ण उणो अ इम्रराण ||
श्रवणेs देइ म गुणे दोसे णमेइ देह प्र पप्रासं । दीसइ एस विरुद्धो व्व को वि लच्छीए विष्णासो ||
प्रणोष्णं लच्छिगुणाण णूण पिसुणा गुणच्चि ण लच्छी । लच्छी महिलेइ गुणे लच्छि ण उणो गुणा जेण ॥
दुक्खाभावो ण सुहं ताई विण सुहाई जाई सोक्खाई । मोत्तूण सुहाइ सुहाइ जाइ ताइच्चिन सुहाई ।।
सुहसंग गारवेच्चित्र हवंति दुःखाई दारुणश्रराई । प्रालोक्करिसेच्चिन च्छाया बहलत्तणमुवे ||
सह-संगो सुह-विणिवत्तिएक्क- चित्ताण प्रविरथं फुरइ । अंगुलिपिहिप्राण वो प्रवोच्छिष्णो व्व कण्णण ॥
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वाक्पतिराज की
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