Book Title: Vakpatiraj ki Lokanubhuti
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur

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Page 43
________________ 65. 66. 67. 68. 69. 70. 24 जा विउला जाओ चिरं जा परिहोडज्जलानो लच्छीप्रो । आरधराणंचिन ताम्रो ण उणो अ इम्रराण || श्रवणेs देइ म गुणे दोसे णमेइ देह प्र पप्रासं । दीसइ एस विरुद्धो व्व को वि लच्छीए विष्णासो || प्रणोष्णं लच्छिगुणाण णूण पिसुणा गुणच्चि ण लच्छी । लच्छी महिलेइ गुणे लच्छि ण उणो गुणा जेण ॥ दुक्खाभावो ण सुहं ताई विण सुहाई जाई सोक्खाई । मोत्तूण सुहाइ सुहाइ जाइ ताइच्चिन सुहाई ।। सुहसंग गारवेच्चित्र हवंति दुःखाई दारुणश्रराई । प्रालोक्करिसेच्चिन च्छाया बहलत्तणमुवे || सह-संगो सुह-विणिवत्तिएक्क- चित्ताण प्रविरथं फुरइ । अंगुलिपिहिप्राण वो प्रवोच्छिष्णो व्व कण्णण ॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only वाक्पतिराज की www.jainelibrary.org

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