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वि (प्र)=भी धीर-पडिबद्ध-परिभरा [(धीर)-(पडिबद्ध) भूकृ पनि(परिभर) 5/1] होंति (हो) व 3/2 अक सप्पुरिसा (सप्पुरिस)
1/2
d किसी कार्य का कारण बतलाने के लिए संज्ञा शब्द में तृतीया या पंचमी का प्रयोग किया जाता है । कभी कभी षष्ठी का प्रयोग तृतीया के स्थान पर भी होता है (हेम प्राकृत व्याकरण : 3-134)
47. विण्णाणालोमोच्चिन [ ( विण्णाण )+ ( पालोमो)+(चित्र) ]
[विण्णाण)-(प्रालोस) 1/1] चित्र (अ) = ही कुमईण (कुमइ) 6/2 विसारनं (वि-सारमा) 2/1 पासेइ (पप्रास) व 3/1 सक कसणाण (कसण) 6/2 वि मणीणं (मणि) 6/2 पिव (प्र) = जैसे तेअ-प्फुरणं [(तेप्र)-(प्फुरण) 1/1] सिनं (सिप्र) 1/1 वि
48. हिमन-विप्रडत्तणेणं [(हिप्र)-(विअडत्तण) 3/1] गरुपाण (गरुष)
6/2 T (अ) - नहीं णिव्वडंति (णिव्वड) व 3/2 अक बुद्धीमो (बुद्धि) 1/2 घोलंति (घोल) व 3/2 अक महा-भवणेसु [(महा)(भवण) 7/2] मंद-किरण [(मंद) वि-(किरण) 1/2 मागे संयुक्त मक्षर (च्चिन) के प्राने से दीर्घ स्वर ह्रस्व हुआ है] च्चिन (प्र) = ही पईवा (पईव) 5/1
49. अच्चंत-विएएण [(प्रच्चंत) वि-(विएअ) 3/1 वि] वि (अ)- ही
गरुआण (गरुन) 6/2 वि प्र)=नहीं णिव्वडंति (रिणव्वड) व . 3/2 प्रक संकप्पा (संकप्प) 1/2 विज्जुज्जोरो [ (विज्जु)+
लोकानुभूति
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