Book Title: Vakpatiraj ki Lokanubhuti
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur

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Page 49
________________ 82. उक्करिसोच्चेमण जाण तारण को वा गुणाण गुरण-भावा । सो वा पर - सुचरित्र - लंघणेण ण गुणत्तणं. तह वि ।। 83. णवरं दोसा तेच्चे जे मस्स वि जणस्स सुवंति । णज्जति जिअंतस्स वि जे गवर गुणा वि तेच्चे ।। 84. ववहारेच्चिन छायं णिएह लोअस्स किं व हिपएण । तउग्गमो मणीण वि जो बाहिं सो ण भगम्मि ।। 85. सम-गुण - दोसा दोसेक्क • दंसिणो संति दोस • गुण-वामा । गुण • दोस - वेइणो णस्थि जे उ गेण्हंति गुणमेत्तं । 86. सच्चविपासप्रल • गुणं पि सज्जणं सुवुरिसा पसंसति । परिबंध • शूमिमद को वा रमणं । विमारेइ । 30 भापतिराज को Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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