Book Title: Vakpatiraj ki Lokanubhuti
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur

View full book text
Previous | Next

Page 51
________________ 87. सोहइ प्रदोस • भावो गुणो ब्व जइ होइ मच्छरत्तिभ्णो विहवेसु व गुणेसु वि दुमेइ ठिो अहंकारो। 88. जेण गुणग्यविप्राण वि ण गारवं धरण - लवेण रहिमाण तेण विहवाण णमिमो तेणंचित्र होउ विहवेहि । 89. दविणोवपार • तुच्छा वि सज्जणा एत्तिएण धीरेंति। जं ते रिणम - गुण - लेसेहिं ‘देंति काणं पि परिप्रोसं । .. 90. दुर्मति सज्जणाणं पम्हसिन - दसाण तोस - कालम्मि दाणापर - संभम - दि8 - पास - सुण्णाई विलिपाई। 91. सइ जाढर - चिंतामड्ढि व हिमनं महो मुह जाण। उधर - चित्ता कह णाम होंतु ते सुण्ण • ववसाया॥ 32 पाकपतिराज की Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96