Book Title: Vakpatiraj ki Lokanubhuti
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur

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Page 59
________________ व्याकरणिक विश्लेषण " 1 इह (अ) = इस लोक में ते (त) 1/2 सवि ज ंति (ज) व 3/2 अव इणी (इ) 1/2 जग्रमिणमो [ ( ज ) + (इमो ) ] जन (ज) 1/ इमो (इम) 1/1 सवि जाण (ज) 6/1 सवि. सग्रल - परिणाम [ ( सग्रल वि - (परिणाम) 1 / 1 ] वाश्रासु (वाना) 7 / 2 ठि (ठि) भूकृ 1 / 1 श्र etes ( दीes) व कर्म 3 / 1 सक अनि श्रामोग्र-धरणं [ (ग्रामो ) - (घण 1 / 1 वि] व (प्र) = या तुच्छं (तुच्छ ) 1 / 1 वि व (अ) = या 2. णिश्रश्राए (मिश्र णिश्रश्रा) 3 / 1 वि → चिचश्र (प्र) = ही वाला (वाना) 3 / 1 प्रत्तणो (प्रत्तारण) 6/1 गारवं (गारव) 2 / 1 णिवेसता (रिवेस वकॄ 1/2 जे (ज) 1/2 सवि ए ंति (ए) व 3 / 2 सक पसंसं (पसंसा) 2/ चित्र ( अ ) - निश्चय ही जन ति (ज) व 3 / 2 अक इह (प्र) = झ लोक में ते (त) 1/2 सवि महा-कइणो [ (महा) वि- (इ) 1/2 | 3. दोग्गच्चम्मि (दोग्गच्च) 7 / 1 वि ( अ ) = भी सोक्खाई (सोक्ख) 1/2 ता (त) 6 / 2 संविवि (विहव) 7 / 1 होंति (हो) व 3 / 2 अक दुक्खाई (दुक्ख 1/2 कव्व - परमत्थ - रसिश्राई [ ( कव्व) - (परमत्थ) - (रसि) 1/2 वि ] जार (ज) 6 / 1 सवि जाति (जान) व 3 / 2 प्रक हिश्रश्राइं (हिम) 1/ 4. सोहेइ ( सोह) व 3 / 1 अक सुहावेइ (सुहाव) व 3 / 1 सक प्र ( अ ) = तथ उवहुज्जतो (उवहुज्जतो) कर्म वकृ 1 / 1 अनि लवो (लव) 1 / 1 वि (प्र. भी लच्छीए ( लच्छी) 6/1 देवी (देवी) 1 / 1 सरसई ( सरस्सई) 1 / 1 उप (अ) - किन्तु श्रसमग्गा ( अ - समग्ग प्र - समग्गा ) 1 / 1 वि किंपि (प्र) - किंचित् विरणडेइ ( विणड) व 3 / 1 सक. = 5 लग्गिहि (लग्ग ) भवि 3 / 1 सकण (प्र) - नहीं वा ( अ ) - अथवा सुमसे (ए) 2/2 वर्याणिज्जं ( वयरिगज्ज) 1 / 1 दुज्जरणेहिं (दुज्जरण) 3/2 वाक्पतिराज की 40 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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