Book Title: Vakpatiraj ki Lokanubhuti
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur

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Page 69
________________ तोरई (तीर) व 3/1 अक गुण-डिओ [(गुण)-(द्विन) भूक 1/1 अनि ] काउं ( काउं) हेकृ अनि णिव्वनिम-गुणाण [(णिवडिप्र) बि-(गुण) 6/2] पुणो (अ)=किन्तु दोसेसु (दोस) 7/2 मई (मइ) 1/1 ग (म) = नहीं संठाइ (संठा) ब 3/1 अक 39. मह (अ) = वास्तव में मोहो (मोह) 1/1 पर गुण-लहुप्रभाए [(पर)-(गुण)-(लहुप्रमा) 3/1] जं (अ) = कि किर. (अ) जैसा कि लोग कहते हैं गुणा (गुण) 1/2 पयति (पयट्ट) व 3/2 अक अप्पाण-गारवंचिन [(अप्पाण)-(गारव) 1/1] चित्र (अ) = ही गुणाण (गुण) 6/2 गरुनत्तण-णिमित्त [(गरुपत्तण) (रिणमित्त) 1/1] 40. वुभंते (वुभंते) व कर्म 3/2 सक आनि जम्मि (ज) 7/1 सवि गुणुण्णमा [(गुण) + (उण्णा )] [(गुण)-(उण्णा )] 1/2 वि] वि (प्र) - भी लहुअत्तणं (लहुअत्तण) 2/1 ब (प्र) = मानो पार्वति (पाव) व 3/2 सक कह (म) - कैसे णाम (अ) - यथार्थ में णिग्गुण (णिग्गुण) 1/2 आगे संयुक्त प्रक्षर (च्चिन) के पाने से दीर्घ स्वर हृस्व हुआ है। च्चिन (अ) = भी तं (त) 2/1 सवि वहंति (वह) व 3/2 सक माहप्पं (माहप्प) 2/1 * प्रश्नवाचक शब्दों के साथ वर्तमान का प्रयोग भयिष्यत् काल के अर्थ में हो जाया करता हैं । 41. माहप्पे (माहप्प) 7/1 गुण-कज्जम्मि [(गुण)-(कज्ज) 7/1] वाक्पतिराज की 50 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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