Book Title: Vakpatiraj ki Lokanubhuti
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur

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Page 64
________________ 22. 21. एक्के (एक्क) 1/2 सवि लहुप्रसहावा [(लहुअ) वि- (सहाव) 1/2] गुणेहिं (गुण) 3/2 लहिउं* (लह) हेकृ महंति (मह) व 3/2 सक धरण -रिदि [ (ध ग)-(रिद्धि) 2/1 ] अण्णे (अण्ण) 1/2 सवि बिसुद्ध-चरित्रा [(विसुद्ध) वि—(चरित्र) 1/2] विहवाहि (विहव) 3/2 गुणे (गुण) 2/2 विमग्गंति (विमग्ग) व 3/2 सक * 'इच्छा' अर्थ की क्रियामों के साथ हेत्वर्थ कृदन्त का प्रयोग होता है। परिवार-दुज्जणांइ [(परिवार)—(दुज्जण) 1/2 वि] पहु-पिसुणाई [(पहु)-(पिसुण) 1/2 वि] पि (प्र) = तथा होंति (हो) व 3/2 प्रक गेहाई (गेह। 1/2 उहा-खलाइं [(उहप्र) वि-(खल) 1/2 वि] तह (प्र) = इस प्रकार च्चिन (प्र) = ही कमेण (क्रिविम)= क्रम से विसमाई (विसम) 1/2 वि । मण्णेत्या (मण्ण) व 2/2 सक । * यहाँ विधि पर्थ में वर्तमान का प्रयोग है। 23. मूढे (मूढ) 7/1 जगम्मि (जण) 7/1 अ-मुगिन-गुण-सार विवेप्र. वइअरुग्विग्गा [ (अ-मुणि+(गुण)+ (सार)+ (विवेन)+(वइअर)+(उन्विग्गा) ] [ ( अ-मुरिण) भूक-(गुण) (सार)(विवेप्र)-(वइमर)-(उब्विग्ग)- 1/2 वि] कि (कि) 2/1 सवि अण्णं (अण्ण) 2/1 वि सप्पुरिसा (सप्पुरिस 1/2 गामानो (गाम) 5/1 वर्ग (वण) 2/1 पवज्जति (पवज्ज) व 3/2 सक कभी-कभी सप्तमी विभक्ति का प्रयोग तृतीया के स्थान पर किया जाता है । [हेम प्राकृत व्याकरण : 3-135] 24. दुक्खेहिं (दुक्ख) 3/2 दोहि (दो) 3/2 सुप्रणा (सुप्रण) 1/2 अहिऊरिज्जति (महिऊर) व कर्म 3/2 सक विअसिम (क्रिविम) लोकानुभूति 45 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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