Book Title: Vakpatiraj ki Lokanubhuti
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
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भतं ( भण्ांत) कर्म वकू 1 / 1 प्रनि ताण (त) 6 / 2 सवि पुण (प्र) किन्तु तं (त) 1 / 1 सुग्रणाववान-वोसेण ( ( सुप्ररण) + (प्रववान) + (दोसेण)] [(सुप्ररण) - (श्रववान) - (दोस) 3 / 1] सघडइ (संघड) व 3 / 1 श्रक
6 पर - गुण - परिहार - परंपराए [ ( पर ) - गुण) - (परिहार ) - ( परंपरा) 3 / 1] तह (अ) = उसी प्रकार ते (त) 1/2 सवि गुणष्णुश्रा (गुणण्णु) स्वार्थिक 'प्र' 1/2 वि जाना (जा) भूकृ 1 / 2 तेहि (त) 3 / 2 सवि चित्र प्र) ही जह (प्र) - जिस प्रकार गुणहँ (गुण) 3 /2 गुणिनो (गुणि) 1/2 वि परं (प्र) = प्रत्यन्त पिसुणा ( पिसुण) 1 / 2
7. जं ( अ ) = चूँकि णिम्मला (रिगम्मल) 1/2 वि वि ( अ ) - भी खिज्जंति ( खिज्ज व 3 / 2 अक हंत श्र) = खेद विमलेहिं (विमल ) 3 / 2 वि सज्ज - गगुणेहि [ ( सज्जा) - (गुण) 3/2] तं (प्र) = इसलिए सरिसं ( सरिस ) 1 / 1 ससि-र-कारणाए ( (ससि) - (र) - (काररणा ) 6 / 1] करि - दंतविप्रणाए [ ( करि ) - (दंत) - (विप्ररणा ) 3 / 1]
=
-
8. जारण (ज) 4 / 1 स श्रसमेहिं ( प्र सम) 3 / 2 वि विहिना (विहिना) भूकृ 1/1 अनि जान (जान) व 3 / 1 क रिंगदा ( रिंगदा ) 1 / 1समा (समा) 1/1 वि सलाहा (सलाहा ) 1 / 1 वि (प्र भी तेहिं (त) 3 / 2 सविण (प्र) - नहीं तान (त) 6/2 मण्णे ( मरण) 7/1 किलामेइ (किलाम) व 3 / 1 सक
=
a
समा - के समान (सम→ समा)
d कभी कभी द्वितीया विभक्ति के स्थान पर सप्तमी विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है । (हेम प्राकृत व्याकरण :3-135 )
9. बहुओ (बहुध ) 1 / 1 वि सामण्ण - महसणेण [ ( सामण्ण ) - (मइत्तण) 3 / 1] ताणं (त) 6 / 1 सवि परिग्गहे (परिग्गह) 7/1 लोप्रो ( लोन ) 1 / 1 कामं (प्र) = प्रसन्नतापूर्वक गया ( ग ) भूकु 1 / 2 अनि पसिद्धि
लोकानुभूति
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