Book Title: Vakpatiraj ki Lokanubhuti
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur

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Page 53
________________ 92. लोए अमुणिम - सारत्तणेण खणमेत्तमुश्विग्रंताण । णिग्रम - विधेय-विमा गरूमाण गुणा पट्टति ।। 93. गेण्हउ विहवं प्रवणेउ णाम लीलावहे वय-विलासे । दूमेइ कह णु देवो गुण - परिउट्ठाइ हिमपाई। 94. अघडिम - परावलंबा जह, जह गरुअत्तणेण विहडं ति । तह तह गरुपाण हवंति बद्ध-मूलामो कित्तीमो ।। 95. प्रसलाहणे खलुच्चिन अलिम - पसंसाए दुज्जणो विउण। अपवत्त - गुणे सुप्रणो दुहा वि पिसुणत्तण लहइ ॥ 96. तण्हा अखंडिग्रच्चिन विहवे अच्चुण्णए वि लहिऊण। सेलं पि समारहिऊण किं व गमणस्स प्रारुढं ॥ 34 वाक्पपिरान की Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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