Book Title: Vakpatiraj ki Lokanubhuti
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
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59. थाम-त्थाम-णिधेसिन - सिरीण गरुमाण कह णु दालिद्द।
एक्का उण किविण - सिरी गमा.म मूलं च पम्हुसिनं ।।
60. किविणाण अण्ण - विसए दाण - गुणे महिसलाहमाणाण ।
णिम - चाए उच्छाहो ण णाम कह वा ण लज्जा वि ।।
परमत्थ • पाविप्र - गुणा गरुग्रं पि हु पलहुमं व मण्णंति । तेण सिरीए विरोहो गुणेहिं णिक्कारणं ण उण ।।
62. भुममा • भंगाणत्ता वि सुवुरिसं जं ण तुरियमल्लिाइ । - तं मण्णे धावंती रहसेण सिरी परिक्खलइ ।।
63.
णणु णासमणवलंवा एइच्चिन सा वि सुवुरिसाभावे । देव-वसा तेण सिरीए होइ णासंसिनो विरहो ।
64.
धम्म-पसूपा कह होउ भवई वेस-सज्जणा लच्छी । तामो मलच्छिमोच्चिम लच्छि-णिहा जा मणज्जेस ।
22
बापतिराज को
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