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41. (वास्तव में) महिमा में (और) गुणों के फल में (संबंध है), (किन्तु)
दुष्ट पुरुष (जो सोचते हैं कि) अगुणों के फल के द्वारा महिमाएँ बँधी हुई (हैं), (वे) गुणों (के अन्दर) से विपरीत उत्पत्ति को चाहते हैं ।
42.
गुणों से उत्पन्न मद सुपुरुषों के हृदय में कभी प्रवेश नहीं करता है , इस तरह पूर्णतः अप्रदर्शित मद के कारण भी उनके गुण महान होते हैं।
43. तब तक ही ईर्ष्यारूपी अपवित्रता (रहती है), जब तक विवेक स्पष्ट
रूप से प्रकट नहीं होता है, (ठीक ही है) एक अोर पवित्र अग्नि द्वारा जलना हुआ, दूसरी ओर धूमा बिदा हुआ ।
44. प्राश्चर्य ! गुणी (व्यक्ति) वैभव पर प्रारूढ (व्यक्तियों) के लिए (तथा)
वैभवशाली (व्यक्ति) गुणों में महान् (व्यक्तियों) के लिए कुछ भी नहीं (हैं)। (वे) आपस में (एक दूसरे को) (इस तरह से) छोटा करते हैं, जैसे जो (लोग) पर्वतों के नीचे भाग पर (और) (उनके) शिखर पर (स्थित रहते हुए) (एक दूसरे को छोटा करते हैं)।
45. जैसे-जैसे इस समय गुण शोभायमान नहीं होंगे, (तथा) जैसे-जैसे
(इस समय) दोष फलेंगे, वैसे-वैसे जगत भी अगुणों के आदर से गुणशून्य हो जायगा।
46. (सत्पुरुषों का) राजामों से भी क्या प्रयोजन (है)? (जिनके द्वारा)
विवेक से सकल इच्छाएं छोड़ी गई हैं (तथा) (जो) आसक्ति रहित (है), (वे) सत्पुरुष विधाता के साथ भी (संघर्ष करने के लिए) धैर्य
रूपी कटिबंध से बँधे हुए. होते हैं । लोकानुभूति
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