Book Title: Vakpatiraj ki Lokanubhuti
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur

View full book text
Previous | Next

Page 37
________________ 47. 48. 49. 50. 51. 52. 18 विष्णाणालोमोच्चि कुमईण विसारनं पचासेइ । कसणाण मणीणं पिव तेल-प्फुरणं सिनं चेन ॥ हिश्रश्र विग्रडत्तणेणं गरुप्राण णणिव्वति बुद्धीश्रो । घालंति महा - भवणेसु मंद - किरणच्चित्र पईवा ।। अच्चंत - विएएण वि गरुम्राण ण णिव्वडति संकप्पा | विज्जुज्जोभो बहलत्तणेण मोहेइ श्रच्छोइ ॥ · जे गेव्हंति सचित्र लच्छिण हु ते ण गारव द्वाणं । ते उण केवि सर्याचित्र दालिद्दं घेप्पए जेहि || मरणमहिणदमाणाण अप्पणच्चै कुणइ कुविप्रो कतो जइ विवरी एक्के पावंति ण तं प्रण्णे परनो व्व तीए दीसंति । इराण महग्घाणं च अंतरे णिवसइ पसंसा || Jain Education International · For Personal & Private Use Only मुक्कविवाण । सुपुरिसाण || बाकूपतिराज की www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96