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47.
ज्ञान का प्रकाश ही कुमतियों की निस्सारता को प्रकाशित करता है । जैसे काले मणियों के (कालेपन को) सफेद प्रकाश की सफेद दमक ही (प्रकाशित करती है)।
48. हृदय की विशालता के कारण महान् (व्यक्तियों) की सम्मतियां प्रकट
नहीं होती हैं । (ठीक ही है) दीपक से (उत्पन्न) मंद-किरणें महाभवनों में ही फिरती हैं अर्थात् बाहर नहीं पाती हैं ।
49.
अत्यन्त प्रोजस्वी होने के कारण ही महान् (व्यक्तियों) के संकल्प संपन्न नहीं होते हैं । (ठीक ही है) पुष्कलता के कारण बिजली का प्रकाश प्रांखों को अस्त-व्यस्त कर देता है ।
50. वास्तव में (यह) नहीं (है) (कि) जो स्वयं ही लक्ष्मी को प्राप्त करते
हैं, वे गौरव के योग्य नहीं हैं, किन्तु वे कुछ (ही) (महान लोग हैं) जिनके द्वारा स्वयं ही धन-हीनता ग्रहण की जाती है ।
51.
कुछ (लोग) उसको (प्रशंसा को) प्राप्त नहीं करते हैं, तथा कुछ (लोग) उसके (प्रशंसा के) परे देखे जाते हैं, प्रशंसा (तो) अति-सम्माननीय तथा जघन्य (मनुष्यों) के बीच में (स्थित व्यक्तियों की) होती है ।
52. यमराज, यदि कुपित (है) (तो भी) मरण का स्वागत करते हुए
(तथा) स्वयं के द्वारा ही वैभव का त्याग किए हुए सत्सुरुषों के लिए
विपरीत करता है (अर्थात उनके जीवन को बढा देता है) लोकानुसूति
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