Book Title: Vakpatiraj ki Lokanubhuti
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur

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Page 27
________________ 19. पेच्छह विवरीश्रमिमं बहुना मइरा मएइ ण हु थोवा । लच्छी उण थोवा जह मएइ ण तहा इर बहुश्रा ॥ 20. जे निव्वडिग्र - गुणा वि हु सिरि गया ते वि पिग्गुणा होंति । ते उष्ण गुणाण दूरे अगुणच्चित्र जे मघा लच्छि । 21. एक्के लहुन सहावा गुणेहि लहिउं पहंति घण- रिद्धि । अणे विसुद्ध चरिमा विहवाहि गुणे विमति ।। 22. परिवार - दुज्जणाई पहु- पिसुणाई पि होंति गेहाई । उम्र-खलाई तहच्चिन कमेण विसमाइ मष्णत्था ॥ 23. मूढे जण्णम्मिश्र मुणि गुण-सार- विवेन व इरुव्विग्गा । किं अष्णं सप्पुरिसा गामात्र वणं पवज्जंति ॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only वाक्पतिराज ब www.jainelibrary.org

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