Book Title: Vakpatiraj ki Lokanubhuti
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
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29. वच्चंति वेस - भावं जेहिंचिन सज्जणा गरिंदाण । ___ तेहिंचिन बहुमाणं गुणेहि किं णाम मगंति ।।
30. को व्व ण परंमुहो णिग्गुणाण गुरिणणो ण कं व दूति ।
जो वारण गरणी जो वा परिणग्गुणो सो सुहं जिसइ ।।
31. जं सुप्रणेसु णिप्रत्तइ पहूण पडिवत्ति - णीसहं हिमनं ।
तं खु इमं रप्रणाहरण - मोअणं गारव - भएण ।।
32. अविवेम - संकिरणोच्चे णिग्गुणा पर-गुणे पसंसंति । ___ लद्ध • गुणा उण पहुणो बाढं वामा पर - गुणेसु ॥
33. सव्वोच्चिम स-गुणुक्करिस-लालसो वहइ मच्छरुच्छाहं।
ते पिसुणा जे ण सहति णिग्गुणा पर - गुणुग्गारे ।।
34. सुमणत्तणेण घेप्पइ थोएणचिन परो सुचरिएण ।
दुक्ख परिमोसिप्रव्बो प्रप्पागोच्चे लोमस्स ।।
12
वाक्पतिरान की
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